शिव पुराण में महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा शिव महत्व

शिव पुराण में महाशिवरात्रि की पौराणिक कथा

  1. शिव महत्व
  2. शिव पुराण में महाशिवरात्रि की कथा 
  3. शिवलिंग पर जल चढ़ाने की विधि 
इस ब्लॉग में ऊपर दिये गए 3 शीर्षक के बारे में है

शिव महत्व

धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत पिता बताया गया हैं। क्योकि भगवान शिव सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम आनंद प्रदान करता हैं। भगवान शिव भारतीय संस्कृति को दर्शन ज्ञान के द्वारा संजीवनी प्रदान करने वाले देव हैं। इसी कारण अनादि काल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में होते हुवे भी शिवलिंग के रूप में साकार मूर्ति की पूजा होती हैं। देश-विदेश में भगवान शिव के मंदिर हर छोटे-बडे शहर एवं कस्बो में मोजुद हैं, जो भगवान महादेव की व्यापकता को एवं उनके भक्तो कि आस्था को प्रकट करते हैं। भगवान शिव एक मात्र एसे देव हैं जिसे भोले भंडारी कहा जाता हैं, भगवान शिव थोडी सी पूजा-अर्चना से ही वह प्रसन्‍न हो जाते हैं। मानव जाति की उत्पत्ति भी भगवान शिव से मानी जाती हैं। अतः भगवान शिव के स्वरूप को जानना प्रत्येक शिव भक्त के लिए परम आवश्यक हैं। भगवान भोले नाथ ने समुद्र मंथन से निकले हुए समग्र विष को अपने कंठ में धारण कर वह नीलकंठ कहलाये।
Mythological story of Mahashivratri in Shiva Purana

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शिव पुराण में महाशिवरात्रि की कथा 

शिव पुराण के अनुसार-प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था। वो जंगल में जानवरों की हत्या करके अपने परिवार का पेट पलता था। अपनी गरीबी के चलते उसने एक साहूकार से कर्ज लिया था, लेकिन उसका समय पर ऋण न चुका पाया तो साहूकार ने क्रोधित होकर उस शिकारी को शिवमठ में कैद कर लिया था। संयोगवश उसी दिन शिवरात्रि भी थी।शाम होते ही साहूकार ने शिकारी को अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने की बात की। शिकारी ने साहूकार को वचन दिया की वो अगले दिन सारा ऋण लौटा देगा, तब साहूकार ने उसे छोड़ दिया। दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण वह भूख-प्यास से व्याकुल था इसलिए वो अपनी दिनचर्या की भांति जंगल में शिकार के लिए निकल गया लेकिन शिकार खोजते हुए वह बहुत दूर निकल गया। जब अँधेरा हो गया तो उसने रात जंगल में ही बिताने का सोचा। वह जंगल, एक तालाब के किनारे था. शिकारी एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात बीतने का इंतजार करने लगा।
उसी बिल्व वृक्ष के नीचे बिल्वपत्रों से ढंका हुआ एक शिवलिंग था। शिकारी को उस शिवलिंग के बारे में कुछ पता नहीं था। पेड़ पर पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोगवश शिवलिंग पर गिरती गई। इस प्रकार दिनभर से भूखे-प्यासे शिकारी का अनजाने में व्रत हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए।रात का एक पहर बीत जाने पर एक गर्भवती हिरणी तालाब पर पानी पीने आई। जिसे देखकर शिकारी खुश हो गया. जैसे ही शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर प्रत्यंचा खींची, तभी हिरणी बोली- ‘ हे शिकारी ! मैं एक गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। अगर तुमने मुझे मारा तो तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब तुम मुझे मार देना।’यह सुनकर शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी को जाने दिया। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने में कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूटकर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उसने अनजाने में प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न कर लिया।
कुछ समय पश्चात् एक और हिरणी उधर से गुजर रही थी, शिकारी की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। जैसे ही हिरणी समीप आने लगी तब शिकारी ने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- ‘हे शिकारी ! मैं अभी थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ और अपने पति की खोज में दर दर भटक रही हूं। जैसे ही मुझे मेरे पति मिल जायेंगे , मैं उनसे मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी तब मेरा शिकार कर लेना।’ यह सुनकर शिकारी ने उसे भी जाने दिया।दो बार इतने करीब से अपने शिकार को खोकर वो गुस्से में आग बबूला हो गया। और चिंता में पड़ गया। धीरे धीरे रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिरे और इस तरह दूसरे प्रहर की पूजा भी सम्पन्न हुई।तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से गुजरी। अब शिकारी के लिए यह एक स्वर्णिम अवसर जैसे था। उसने अपने धनुष पर तीर चढ़ाने में तनिक भी देरी नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- ‘हे शिकारी! मैं अपने बच्चों को इनके पिता के पास छोड़ कर लौट आऊंगी तब तुम मुझे मार देन, इस समय मुझे जाने दो’
ये सुनकर शिकारी जोर जोर से हंसने लगा और बोला -‘मैं इतना भी मुर्ख नहीं हूँ जो सामने आए शिकार को बिना मारे छोड़ दूं, तुमसे पहले मैंने दो बार शिकार छोड़ चुका हूं। घर पर मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’शिकारी की बात सुनकर हिरणी ने कहा- सुनो शिकारी, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की चिंता सता रही है, ठीक उसीप्रकार मुझे भी अपने बच्चों की चिंता है। इसलिए हे शिकारी ! मेरा विश्वास करो, मैं बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत तुम्हारे पास लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं। शिकारी ने जब हिरणी का दुखभरा स्वर सुना तो उसे उस हिरणी पर दया आ गई। और उसने उस हिरणी को भी जाने दिया। लम्बे समय से शिकार के अभाव में और भूख-प्यास से परेशान शिकारी अनजाने में ही बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था।तभी अचानक उसे एक हष्ट-पुष्ट मृग आटे हुए दिखा । शिकारी ने मन ही मन ये ठान लिया था कि वह इसका शिकार अवश्य करेगा। उधर शिकारी की तनी प्रत्यंचा देख मृग विनीत स्वर में पूछा   ‘ हे शिकारी ! क्या तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन हिरणियों और बच्चों को मार डाला हैअगर हाँ तो तुम मुझे भी मारने में तनिक भी विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक पल भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति और उन बच्चों का पिता हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ समय का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा, फिर तुम मुझे मार देनामृग की बात सुनकर शिकारी की आँखों के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया। और उसने पूरी कथा मृग को सुनाई. तब मृग ने कहा- ‘मेरी तीनों पत्नियां जैसे प्रतिज्ञाबद्ध होकर यहाँ से गई हैं, मेरी मृत्यु के पश्चात् अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबको लेकर तुम्हारे सामने अतिशीघ्र ही उपस्थित होने का वचन देता हूँ’
शिकारी ने उस मृग को भी जाने दिया। देखते देखते इस प्रकार सुबह हो आई। और शिकारी द्वारा अनजाने में उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई। लेकिन अनजाने में ही सही, की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। और शिकारी का हिंसक हृदय अब निर्मल हो गया था।
थोड़ी ही देर बाद, वह मृग अपने परिवार सहित शिकारी के समक्ष उपस्थित हुआ, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। और उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया।अनजाने में ही सही लेकिन शिवरात्रि के व्रत का पालन करने से शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई। और जब मृत्यु काल में यमदूत उसे के जाने के लिए आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को अपने साथ शिवलोक ले गए। शिवजी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महा शिवरात्रि व्रत के महत्व को समझकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।

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शिवलिंग पर जल चढ़ाने की विधि -

जल चढ़ाने के लिए आपके पास एक तांबे, चाँदी और कांसे के पात्र के अंदर जल होना चाहिए और उस जल मे गंगाजल भी मिला होना चाहिए। स्टील आदि के लोटे का इस्तेमाल करने से बचें। शिवलिंग में कभी भी तेजी से जल अर्पित न करें। शिवलिंग पर एक धारा में जल अर्पित करना शुभ माना जाता है। शिवलिंग में जल चढ़ाते समय. कभी भी तुलसी का इस्तेमाल न करें। भगवान शिव को तुलसी चढ़ाना वर्जित है। मंदिर में शिवलिंग के चारों तरफ कुछ देवता विराजमान होते हैं। शास्त्र के अनुसार, शिवलिंग में जल चढ़ाते समय दक्षिण दिशा की ओर खड़े होना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति का मुख उत्तर दिशा की ओर होगा। उत्तर दिशा को देवी-देवता की दिशा मानी जाती है। कभी भी पश्चिम दिशा की ओर खड़े होकर भगवान शिव को जल अर्पित न करें। क्योंकि पश्चिम दिशा में भगवान की पीठ होती है। इसलिए इस दिशा में खड़े होकर जलाभिषेक करने से फलों की प्राप्ति नहीं होगी। जल चढ़ाते समय सबसे पहले आपको गणेश जी पर जल चढ़ाएं। उसके बाद आपको माता पार्वती पर जल चढ़ाए। उसके बाद कार्तिकय पर आपको जल चढ़ाना होगा। फिर आपको नंदी का स्नान करवाना होगा। फिर आपको विरभद्र देवता का स्नान करवाना है। जो शिवलिंग के आगे विराजमान होते हैं। फिर आपको सर्प देवता पर जल चढ़ाना होगा। फिर आपको शंकर भगवान के उपर जल चढ़ाना होगा और यदि आप दूध या फल के रास को चढ़ाना चाहते हैं तो इसी क्रम मे आपको शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। शिवलिंग में जल चढ़ाते समय कभी भी तुलसी का इस्तेमाल न करें। भगवान शिव को तुलसी चढ़ाना वर्जित है। शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद पूरी परिक्रमा नहीं करना चाहिए। क्योंकि जो जल अर्पित किया जाता है वह पवित्र हो जाता है। ऐसे में उस जल को लांघना अशुभ माना जाता है। अगर मंत्र पूरा मंत्र याद न हो तो मात्र "श्रीभगवते साम्बशिवाय नमः । स्नानीयं जलं समर्पयामि ॥" इतना हीं जपते हुए जल भगवान् भोलेनाथ को समर्पित करें। भोलेनाथ आपके इस भाव से भी संतुष्ट हो पूरा आशीर्वाद देंगे। आपका कल्याण करेंगे।
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 🙏नमस्ते दोस्तों आपका स्वागत है हमारे ब्लॉग पर और हमारे ब्लॉग पोस्ट पर हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं से सम्बंधित है और मुझे खुशी है कि मेरा जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ और मुझे अपने देवी-देवताओं के बारे में पढ़ने की रुचि बहुत है और दोस्तों मुझे लगता है कि मैं अपने हिंदू भाइयों और बहनों के लिए हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं से सम्बंधि ब्लॉग पोस्ट करूंगा और हिन्दू धर्म में देवताओं का ज्ञान एक महत्वपूर्ण और उच्चतम स्तर का ज्ञान है। हिन्दू धर्म में अनंत संख्या में देवी-देवताओं की पूजा और आराधना की जाती है, जो सभी विभिन्न गुणों, शक्तियों, और प्रतिष्ठाओं के साथ सम्मानित हैं। विभिन्न पुराणों, ग्रंथों, और धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से, हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के गुण, विशेषताएं, और महत्व का अध्ययन किया जाता है अगर आपको हमारा ब्लॉग पोस्ट पसंद आया हो तो आप इसे सोशल मीडिया फेसबुक व्हाट्सएप आदि पर जरूर शेयर करें। और कृपया हमें कमेंट करके बताएं कि आपको हमारे ब्लॉग पोस्ट की जान कारी कैसे लगी ! "सनातन अमर था अमर हे अमर रहेगा" !!सनातन_धर्म_ही_सर्वश्रेष्ठ_है!!

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