तुलसी की प्रजातियाँ और तोड़ने से पहले कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए,Species of Tulsi and some things to be kept in mind before plucking
तुलसी की प्रजातियाँ और तोड़ने से पहले कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए
तुलसी की महिमा बताने वाला एक श्लोक भी हैं
"तुलसी वृक्ष ना जानिये।गाय ना जानिये ढोर।।
गुरू मनुज ना जानिये। ये तीनों नन्दकिशोर।।
अर्थात-
तुलसी को कभी पेड़ ना समझें गाय को पशु समझने की गलती ना करें और गुरू को कोई साधारण मनुष्य समझने की भूल ना करें, क्योंकि ये तीनों ही साक्षात भगवान रूप हैं
तुलसी की प्रजातियाँ (tulasee kee prajaatiyaan)
तुलसी की रासायनिक संरचना में काफ़ी अंतर होता है. तुलसी के धार्मिक महत्व के कारण हर घर के आंगन में इसके पौधे लगाए जाते हैं.
यद्यपि सामान्य लोग तुलसी के दो भेदों को जानते हैं, जिनको 'रामा' और 'श्यामा' कहा जाता है। 'ड्रामा' के पत्तों का रंग हलका होता है, जिससे उसका नाम गौरी भी पड़ गया है। श्यामा अथवा कृष्ण तुलसी के पत्तों का रंग गहरा होता है और उसमें कफनाशक गुण अधिक होता है, इसलिए औषधि के रूप में प्रायः कृष्ण तुलसी का ही प्रयोग किया जाता है, क्योंकि उसकी गंध और रस में तीक्ष्णता होती है। इस पुस्तक में आगे चलकर तुलसी चिकित्सा के जो प्रयोग लिखे गए हैं, उनमें जब तक स्पष्ट रूप से अन्य प्रकार की तुलसी का उल्लेख न हो तब तक उसका आशय कृष्ण तुलसी से ही समझना चाहिए। तुलसी की दूसरी जाति 'वन तुलसी' है, जिसे 'कठेरक' भी कहा जाता है। इसकी गंध घरेलू तुलसी की अपेक्षा बहुत कम होती है और इसमें विष का प्रभाव नष्ट करने की क्षमता विशेष होती है।
रक्त दोष, कोढ़, चक्षु रोग और प्रसव की चिकित्सा में भी यह विशेष उपयोगी होती है। तीसरी जाति को 'मरूवक' कहते हैं। 'राजमार्तण्ड' ग्रंथ के मतानुसार हथियार से कट जाने या रगड़ लगकर घाव हो जाने पर इसका रस लाभकारी होता है। किसी विषैले जीव के डंक मार देने पर भी इसको लगाने से आराम मिलता है। चौथी 'बरबरी' या 'बुबई-तुलसी' होती है, जिसकी मंजरी की गंध अधिक तेज होती है। बीज, जिनको यूनानी चिकित्सा पद्धति हकीमी में तुख्म रेहाँ कहते हैं। बहुत अधिक बाजीकरण गुणयुक्त माने गए हैं। वीर्य को गाढ़ा बनाने के लिए उनका प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त और दो-एक जातियाँ विभिन्न प्रदेशों में होती हैं। इन सबमें तीव्र गंध होती है और कृमिनाशक गुण पाया जाता है। अब हम विभिन्न व्याधियों में तुलसी के कुछ चुने हुए प्रयोग नीचे देते हैं।
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तुलसी जी के अन्य नाम और उनके अर्थ।
वृंदा - सभी वनस्पति व वृक्षों की आधि देवी
वृन्दावनी - जिनका उद्भव व्रज में हुआ
विश्वपूजिता - समस्त जगत द्वारा पूजित
विश्व -पावनी - त्रिलोकी को पावन करने वाली
पुष्पसारा - हर पुष्प का सार
नंदिनी - ऋषि मुनियों को आनंद प्रदान करने वाली
कृष्ण-जीवनी - श्री कृष्ण की प्राण जीवनी
तुलसी - अद्वितीय
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तुलसी तोड़ने से पहले कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए
- तुलसी जी को नाखूनों से कभी नहीं तोडना चाहिए,नाखूनों के तोडने से पाप लगता है।
- सांयकाल के बाद तुलसी जी को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए ।
- रविवार को तुलसी पत्र नहींतोड़ने चाहिए ।
- जो स्त्री तुलसी जी की पूजा करती है। उनका सौभाग्य अखण्ड रहता है ,ऐसी मान्यता है।
- द्वादशी के दिन तुलसी को नहीं तोडना चाहिए ।
- सांयकाल के बाद तुलसी जी लीला करने जाती है। इसीलिए सांय काल भी तुलसी जी नहीं तोड़नी चाहिए।
- तुलसी जी वृक्ष नहीं है! साक्षात् राधा जी का अवतार है ।
- तुलसी के पत्तो को चबाना नहीं चाहिए।
तुलसी की पत्तियां तोड़ने के भी कुछ विशेष नियम -
- तुलसी की पत्तियों को सदैव सुबह के समय तोड़ना चाहिए. अगर आपको तुलसी का उपयोग करना है तो सुबह के समय ही पत्ते तोड़ कर रख लें, क्योंकि तुलसी के पत्ते कभी बासी नहीं होते हैं.
- बिना जरुरत के तुलसी को की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए, यह उसका अपमान होता है.
- तुलसी की पत्तियां तोड़ते समय स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें.
- तुलसी के पौधे को कभी गंदे हाथों से न छूएं.
- तुलसी की पत्तियां तोड़ने से पहले उसे प्रणाम करेना चाहिए और इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए- महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते.
- बिना जरुरत के तुलसी को की पत्तियां नहीं तोड़नी चाहिए, यह उसका अपमान होता है.
- रविवार, चंद्रग्रहण और एकादशी के दिन तुलसी नहीं तोड़ना चाहिए.
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