श्री वेंकटेश्वर मंदिर तिरुमाला (सातवीं चोटी)
तिरूपति वेंकटेश्वर मंदिर
तिरूपति वेंकटेश्वर मंदिर भारत के आंध्र प्रदेश के तिरूपति जिले के पहाड़ी शहर तिरुमला में स्थित एक प्रतिष्ठित हिंदू मंदिर है। विष्णु के अवतार वेंकटेश्वर को समर्पित, देवता को कलियुग की चुनौतियों से मानवता को राहत देने के लिए पृथ्वी पर अवतरित होने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। अनुश्रुतियां- इस मंदिर के विषय में एक अनुश्रुति इस प्रकार से है। प्रभु वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार ही माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक सरोवर के किनारे निवास किया था। यह सरोवर तिरुमाला के पास स्थित है। तिरुमाला, तिरुपति के चारों ओर स्थित पहाडि़यां, शेषनाग के सात फनों के आधार पर बनी सप्तगिरि कहलाती हैं। श्री वेंकटेश्वर का यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जो वेंकटाद्री नाम से प्रसिद्ध है। वहीं एक दूसरी अनुश्रुति के अनुसार,11वीं शताब्दी में संत रामानुज तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर चढ़ कर गए थे। प्रभु श्रीनिवास उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। ऐसा माना जाता है कि प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात वे 120 वर्ष की आयु तक जीवित रहे और जगह-जगह घूमकर वेंकटेश्वर भगवान की ख्याति फैलाई। वैकुंठ एकादशी के अवसर पर लोग यहां पर प्रभु के दर्शन के लिए आते हैं, जहां पर आने के पश्चात उनके सभी पाप धुल जाते हैं। मान्यता है कि यहां आने के पश्चात व्यक्ति को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है
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Sri Venkateswara Temple Tirumala (Seventh Peak) |
तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर तिरुपति में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल है। तिरुपति भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं। समुद्र तल से 3200 फुट की ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाडि़यों पर बना श्री वेंकटेश्वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का अद्भूत उदाहरण है। तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि 5वीं शताब्दी तक यह एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। कहा जाता है कि चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं का आर्थिक रूप से इस मंदिर के निर्माण में खास योगदान था।
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वेंकटेश्वर मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का निर्माण कब हुआ इसके मूल तथ्य उपलब्ध नहीं है, लेकिन इतिहासकारों द्वारा माना जाता है कि इस मंदिर के इतिहास का उल्लेख 9वीं शताब्दी में मिलता है, जब काँचीपुरम के पल्लव वंश शासकों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। 15वीं शताब्दी में तिरुपति बालाजी मंदिर को प्रसिद्धि मिलना आरम्भ हुआ था। इस मंदिर का प्रबंधन 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेजों के शासन के अंतर्गत हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला था। इस मंदिर का प्रबंधन वर्ष 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति तिरुमाला-तिरुपति के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्र प्रदेश के राज्य बनने के पश्चात इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्र प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया। यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करने की होती है। एक लाख से भी अधिक श्रद्धालु इस मंदिर में प्रतिदिन दर्शन के लिए आते हैं। भक्तों की लंबी कतारें देखकर सहज की इस मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान लगाया जाता है। मुख्य मंदिर के अलावा यहां अन्य मंदिर भी हैं। तिरुमला और तिरुपति का भक्तिमय वातावरण मन को श्रद्धा और आस्था से भर देता है।यहाँ भी पढ़े क्लिक कर के-
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वेंकटेश्वर मंदिर के रोचक तथ्य
- हिन्दुओं का सबसे पवित्र तीर्थस्थल माना जाने वाला यह प्राचीन तिरूपति बालाजी का मंदिर तिरुमला पर्वत की वेंकटाद्रि नामक सातवीं चोटी पर स्थित है, जो श्री स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे स्थित है।
- बालाजी के सबसे प्राचीन मंदिर की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 3200 फीट है।
- मंदिर के अन्दर भगवान तिरुपति बालाजी अपनी पत्नी पद्मावती के साथ विराजमान हैं।
- मंदिर परिसर में खूबसूरती से बनाए गए अनेक द्वार, मंडपम और छोटे मंदिर हैं।
- मंदिर के मुख्य द्वार के दाईं ओर एक छड़ी रखी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि इसी छड़ी से बालाजी की बचपन में पिटाई हुई थी, जिसके चलते उनकी ठोड़ी पर चोट आई थी। इसके बाद से ही बालाजी की प्रतीमा की ठोड़ी पर चंदन लगाने का चलन शुरू हुआ था और तब से लेकर अब तक उनकी थोड़ी में चंदन का लेप लगया जाता है।
- मंदिर में एक दिया है जो काफी लम्बे समय से बिना तेल और घी के लगातार जल रहा है, ऐसी ही अनेक विशिष्टाओं से युक्त यह स्थल लोगो की अनन्य श्रद्धा का केंद्र बना हुआ हैं।
- मुख्य मंदिर के प्रांगण में भगवान वैंकटेश्चर की प्रतिमा स्थापित है, जिसे प्रतिदिन धोती और साड़ी से सजाया जाता है।
- भगवान की मूर्ति की सफाई के लिए एक ख़ास प्रकार के कपूर का इस्तेमाल किया जाता है जो पत्थर की दीवार पर रगड़ने पर तुरंत टूट जाता है लेकिन मूर्ति पर रगड़ने पर ऐसा कुछ नहीं होता है।
- मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गाँव है, जहाँ पर बाहरी लोगों का जाना निषेध है। वहाँ पर रहने वाले लोग काफी नियमो को मानते हैं। वहां की महिलाएँ ब्लाउज नहीं पहनती है। वहीँ से लाए गये फल और फूल भगवान को चढाए जाते है और वहीँ की ही वस्तुओं को चढाया जाता है जैसे- दूध, घी, माखन आदि।
- मंदिर परिसर में मुख्य दर्शनीय स्थलों में पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि शामिल है।
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