अग्नि पुराण दो सौ इकतीसवाँ अध्याय ! Agni Purana 231 Chapter !
अग्नि पुराण 231 अध्याय - शकुन-वर्णन
पुष्कर उवाच
तिष्ठतो गमने प्रश्ने पुरुषस्य शुभाशुभं ।
निवेदयन्ति शकुना देशस्य नगरस्य च ।। १ ।।
सर्वः पापफलो दीप्तो निर्द्दिष्टो दैवचिन्तकैः ।
शान्तः शुभफलश्चैव दैवज्ञैः समुदाहृतः ।। २ ।।
षट्प्रकारा विनिर्दिष्टाः शकुनानाञ्च दीप्तयः ।
वेलादिग्देशकरणरुतजातिविभेदतः ।। ३ ।।
पूर्वा पूर्वा च विज्ञेया सा तेषां बलवत्तरा ।
दिवाचरो रात्रिचरस्तथा रात्रौ दिवाचरः ।। ४ ।।
क्रूरेषु दीप्ता विज्ञेया ऋक्षलग्नग्रहादिषु ।
धूमिता सा तु विज्ञेया याङ्गमिष्यति भास्करः ।। ५ ।।
यस्यां स्थितः सा ज्वलिता मुक्ता चाङ्गारिणी मता ।
एतास्तिस्रः स्मृता दीप्ताः पञ्च शान्तास्तथापराः ।। ६ ।।
दीप्तायान्दिशि दिग्दीप्तं शकुनं परिकीर्त्तितं ।
ग्रामेऽरण्या वने ग्राम्यास्तथा निन्दितपादपः ।। ७ ।।
देशे चैवाशुभे ज्ञेयो देशदीप्तो द्विजोत्तमः ।
क्रियादीप्तो विनिर्द्दिष्टः स्वजात्यनुचितक्रियः ।। ८ ।।
रुतदीप्तश्च कथितो भिन्नभैरवनिस्वनः ।
जातिदीप्तस्तथा ज्ञेयः केवलं मांसभोजनः ।। ९ ।।
दीप्ताच्छान्तो विनिर्दिष्टः सर्वैर्भेदैः प्रयत्नतः ।
मिश्रैर्मिश्रो विनिर्दिष्टस्तस्य वाच्यं फलाफलं ।। १० ।।
गोश्वोष्ट्रगर्द्दभश्वानः सारिका गृहगोधिका ।
चटका भासकूर्माद्याः कथिता ग्रामवासिनः ।। ११ ।।
अजाविशुकनागेन्द्राः कोलो महिषवायसौ ।
ग्राम्यारण्या विनिर्द्दिष्टाः सर्वेऽन्ये वनगोचराः ।। १२ ।।
मार्जारकुक्कुटौ ग्राम्यौ तौ चैव वनगोचरौ ।
तयोर्भवति विज्ञानं नित्यंक वै रूपभेदतः ।। १३ ।।
गोकर्णशिखिचक्राह्वखरहारीतवायसाः ।
कुलाहकुक्कुभश्येनफेरुखञ्जनवानराः ।। १४ ।।
शतघ्नचटकश्यामचासश्येनकपिञ्जलाः ।
तित्तिरिः शतपत्रञ्च कपोतश्च तथा त्रयः ।। १५ ।।
खञ्जरीटकदात्यूहशुकराजीवकुक्कुटाः ।
भारद्वाजश्च सारङ्ग इति ज्ञेया दिवाचराः ।। १६ ।।
वागुर्युलूकशरभक्रौञ्चाः शशककच्छपाः ।
लोमासिकाः पिङ्गलिकाः कथिता रात्रिगोचराः ।। १७ ।।
हंसाश्च मृगमार्जारनकुलर्क्षभुजङ्गमाः ।
वृक्कारिसिंहव्याघ्रोष्ट्रग्रामशूकरमानुषाः ।। १८ ।।
श्वाविद्वृषभगोमायुवृककोकिलसारसाः ।
तुरङ्गकौपीननरा गोधा ह्युभयचारिणः ।। १९ ।।
बलप्रस्थानयोः सर्वे पुरस्तात्सङ्घचारिणः ।
जथावहा विनिर्दिष्टाः पश्चान्निधनकारिणः ।। २० ।।
गृहाद्गम्य यदा चासो व्याहरेत् पुरतः स्थितः ।
नृपावमानं वदति वामः कलहभोजने ।। २१ ।।
याने तद्दर्शनं शस्तं सव्यमङ्गस्य वाप्यथ ।
चौरैर्मोषमथाख्याति मयूरो भिन्ननिस्वनः ।। २२ ।।
प्रयातस्याग्रतो राम मृगः प्राणहरो भवेत् ।
ऋक्षाखुजम्बुकव्याघ्रसिंहमार्जारगर्दभाः ।। २३ ।।
प्रतिलोमास्तथा राम खरश्च विकृतस्वनः
वामः कपिञ्जलः श्रेष्ठस्तथा दक्षिणसंस्थितः ।। २४ ।।
पृष्ठतो निन्दितफलस्तित्तिरिस्तु न शस्यते ।
एणा वराहाः पृषता वामा भूत्वा तु दक्षिणाः ।। २५ ।।
भचवन्त्यर्थकरा नित्यं विपरीता विगर्हिताः ।
वृषाश्वजम्बुकव्याघ्राः सिंहमार्जारगर्दभाः ।। २६ ।।
वाञ्छितार्थकरा ज्ञेया दक्षइणाद्वामतो गताः ।
शिवा श्यामाननाच्छूच्छूः पिङ्गला गृहगोधिका ।। २७ ।।
शूकरी परपुष्टा च पुन्नामानश्च वामतः ।
स्त्रीसञ्ज्ञा भासकारूषकपिश्रीकर्णच्छित्कराः ।। २८ ।।
कपिश्रीकर्णपिप्यी का रुरुश्येनाश्च दक्षिणाः ।
जातोक्षाहिशशक्रोडगोधानां कीर्त्तनं शुभं ।। २९ ।।
ततः सन्दर्शनं नेष्टं प्रतीपं वानरर्क्षंयोः ।
कार्य्यकृद्बली शकुनः प्रस्थितस्य हि योऽन्वहं ।। ३० ।।
भवेत्तस्य फलं वाच्यं तदेव दिवसं बुधैः ।
मत्ता भक्ष्यार्थिनो बाला वैरसक्तास्तथैव च ।। ३१ ।।
सीमान्तमभ्यन्तरिता विज्ञेया निष्फला द्विज ।
एकद्वित्रिचतुर्भिस्तु शिवा धन्या रुतैर्भवेत् ।। ३२ ।।
पञ्चभिश्च तथा षड्भिरधन्या परिकीर्त्तिता ।
सप्तभिश्च तथा धन्या निष्फला परतो भवेत् ।। ३३ ।।
नृणां रोमाञ्चजननी वाहनानां भयप्रदा ।
ज्वालानला सूर्य्यमुखी विज्ञेया भयवर्द्धनी ।। ३४ ।।
प्रथमं सारङ्गे दृष्टे शुभे देशे शुभं भवेत् ।
संवत्सरं मनुष्यस्य अशुभे च शुभं तथा ।। ३५ ।।
तथाविधन्नरः पश्येत्सारङ्गं प्रथमेऽहनि ।
आत्मनश्च तथात्वेन ज्ञातव्यं वत्सरं फलं ।। ३६ ।।
इत्यादिमहापुराणे आग्नेये शकुनानि नामैकत्रिशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।
अग्नि पुराण दो सौ इकतीसवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 231 Chapter!-In Hindi
दो सौ इकतीसवाँ अध्याय - शकुनके भेद तथा विभिन्न जीवों के दर्शन से होने वाले शुभाशुभ फल का वर्णन
पुष्कर कहते हैं- राजाके ठहरने, जाने अथवा प्रश्न करनेके समय होनेवाले शकुन उसके देश और नगरके लिये शुभ और अशुभ फलकी सूचना देते हैं। शकुन दो प्रकारके होते हैं 'दीस' और 'शान्त'। दैवका विचार करनेवाले ज्यौतिषियोंने सम्पूर्ण दीप्त शकुनोंका फल अशुभ तथा शान्त शकुनोंका फल शुभ बतलाया है। वेलादीप्त, दिग्दीप्त, देशदीप्त, क्रियादीप्त, रुतदीप्त और जातिदीप्तके भेदसे दीप्त शकुन छः प्रकारके बताये गये हैं। उनमें पूर्व-पूर्वको अधिक प्रबल समझना चाहिये। दिनमें विचरनेवाले प्राणी रात्रिमें और रात्रिमें चलनेवाले प्राणी दिनमें विचरते दिखायी दें तो उसे 'वेलादीप्त' जानना चाहिये। इसी प्रकार जिस समय नक्षत्र, लग्न और ग्रह आदि क्रूर अवस्थाको प्राप्त हो जायें, वह भी 'वेलादीप्त' के ही अन्तर्गत है। सूर्य जिस दिशाको जानेवाले हों, वह 'धुमिता', जिसमें मौजूद हों, वह 'ज्वलिता' तथा जिसे छोड़ आये हों, वह 'अंगारिणी' मानी गयी है। ये तीन दिशाएँ 'दीप्त' और शेष पाँच दिशाएँ 'शान्त' कहलाती हैं। दीप्त दिशामें जो शकुन हो, उसे 'दिग्दीप्त' कहा गया है। यदि गाँवमें जंगली और जंगलमें ग्रामीण पशु-पक्षी आदि मौजूद हों तो वह निन्दित देश है। इसी प्रकार जहाँ निन्दित वृक्ष हों, वह स्थान भी निन्द्य एवं अशुभ माना गया है॥ १-७॥
विप्रवर! अशुभ देशमें जो शकुन होता है, उसे 'देशदीप्त' समझना चाहिये। अपने वर्णधर्मके विपरीत अनुचित कर्म करनेवाला पुरुष 'क्रियादीप्त' बतलाया गया है। (उसका दिखायी देना 'क्रियादीत' शकुनके अन्तर्गत है।) फटी हुई भयंकर आवाजका सुनायी पड़ना 'रुतदीप्त' कहलाता है। केवल मांसभोजन करनेवाले प्राणीको 'जातिदीप्त' समझना चाहिये। (उसका दर्शन भी 'जातिदीप्त' शकुन है।) दीप्त अवस्थाके विपरीत जो शकुन हो, वह 'शान्त' बतलाया गया है। उसमें भी उपर्युक्त सभी भेद यत्नपूर्वक जानने चाहिये। यदि शान्त और दीप्तके भेद मिले हुए हों तो उसे 'मिश्र शकुन' कहते हैं। इस प्रकार विचारकर उसका फलाफल बतलाना चाहिये ॥ ८-१०॥
गौ, घोड़े, ऊँट, गदहे, कुत्ते, सारिका (मैना), गृहगोधिका (गिरगिट), चटक (गौरैया), भास (चील या मुर्गा) और कछुए आदि प्राणी 'ग्रामवासी' कहे गये हैं। बकरा, भेड़ा, तोता, गजराज, सूअर, भैंसा और कौआ ये ग्रामीण भी होते हैं और जंगली भी। इनके अतिरिक्त और सभी जीव जंगली कहे गये हैं। बिल्ली और मुर्ग भी ग्रामीण तथा जंगली होते हैं; उनके रूपमें भेद होता है, इसीसे वे सदा पहचाने जाते हैं। गोकर्ण (खच्चर), मोर, चक्रवाक, गदहे, हारीत, कौए, कुलाह, कुक्कुभ, बाज, गीदड़, खञ्जरीट, वानर, शतघ्न, चटक, कोयल, नीलकण्ठ (श्येन), कपिञ्जल (चातक), तीतर, शतपत्र, कबूतर, खञ्जन, दात्यूह (जलकाक), शुक, राजीव, मुर्गा, भरदूल और सारंग ये दिनमें चलनेवाले प्राणी हैं। वागुरी, उल्लू, शरभ, क्रौञ्छ, खरगोश, कछुआ, लोमासिका और पिंगलिका ये रात्रिमें चलनेवाले प्राणी बताये गये हैं। हंस, मृग, विलाव, नेवला, रोछ, सर्प, वृकारि, सिंह, व्याघ्र, ऊँट, ग्रामीण सूअर, मनुष्य, श्वाविद, वृषभ, गोमायु, वृक, कोयल, सारस, घोड़े, गोधा और कौपीनधारी पुरुष ये दिन और रात दोनोंमें चलनेवाले हैं॥ ११-१९॥
युद्ध और युद्धकी यात्राके समय यदि ये सभी जीव झुंड बाँधकर सामने आयें तो विजय दिलानेवाले बताये गये हैं; किंतु यदि पीछेसे आवें तो मृत्युकारक माने गये हैं। यदि नीलकण्ठ अपने घोंसलेसे निकलकर आवाज देता हुआ सामने स्थित हो जाय तो वह राजाको अपमानकी सूचना देता है और जब वह वामभागमें आ जाय तो कलहकारक एवं भोजनमें बाधा डालनेवाला होता है। यात्राके समय उसका दर्शन उत्तम माना गया है; उसके बायें अंगका अवलोकन भी उत्तम है। यदि यात्राके समय मोर जोर-जोरसे आवाज दे तो चोरोंके द्वारा अपने धनकी चोरी होनेका संदेश देता है॥ २०-२२॥
परशुरामजी ! प्रस्थानकालमें यदि मृग आगे आगे चले तो वह प्राण लेनेवाला होता है। रीछ, चूहा, सियार, बाघ, सिंह, बिलाव, गदहे ये यदि प्रतिकूल दिशामें जाते हों, गदहा जोर-जोरसे रेंकता हो और कपिञ्जल पक्षी बायों अथवा दाहिनी ओर स्थित हो तो ये सभी उत्तम माने गये हैं। किंतु कपिञ्जल पक्षी यदि पोछेकी ओर हो तो उसका फल निन्दित है। यात्राकालमें तीतरका दिखायी देना अच्छा नहीं है। मृग, सूअर और चितकबरे हिरन-ये यदि बायें होकर फिर दाहिने हो जायें तो सदा कार्यसाधक होते हैं। इसके विपरीत यदि दाहिनेसे बायें चले जायें तो निन्दित माने गये हैं। बैल, घोड़े, गीदड़, बाघ, सिंह, बिलाव और गदहे यदि दाहिनेसे बायें जायें तो ये मनोवाञ्छित वस्तुकी सिद्धि करनेवाले होते हैं, ऐसा समझना चाहिये। शृगाल, श्याममुख, छुच्छ (छहुँदर), पिंगला, गृहगोधिका, शुकरी, कोयल तथा पुल्लिङ्ग नाम धारण करनेवाले जीव यदि वाम-भागमें हों तथा स्वीलिंग नामवाले जीव, भास, कारुष, बंदर, श्रीकर्ण, छित्त्वर, कपि, पिप्पीक, रुरु और श्येन- ये दक्षिण दिशामें हों तो शुभ है। यात्राकालमें जातिक, सर्प, खरगोश, सूअर तथा गोधाका नाम लेना भी शुभ माना गया है॥ २३-२९॥
रोल और वानरोंका विपरीत दिशामें दिखायी देना अनिष्टकारक होता है। प्रस्थान करनेपर जो कार्यसाधक बलवान् शकुन प्रतिदिन दिखायी देता हो, उसका फल विद्वान् पुरुषोंको उसी दिनके लिये बतलाना चाहिये, अर्थात् जिस-जिस दिन शकुन दिखायी देता है, उसी-उसी दिन उसका फल होता है। परशुरामजी। पागल, भोजनार्थी बालक तथा वैरी पुरुष यदि गाँव या नगरकी सीमाके भीतर दिखायी दें तो इनके दर्शनका कोई फल नहीं होता है, ऐसा समझना चाहिये। यदि सियारिन एक, दो, तीन या चार बार आवाज लगावे तो वह शुभ मानी गयी है। इसी प्रकार पाँच और छः बार बोलनेपर वह अशुभ और सात बार बोलनेपर शुभ बतायी गयी है। सात बारसे अधिक बोले तो उसका कोई फल नहीं होता। यदि रास्तेमें सूर्यकी ओर उठती हुई कोई ऐसी ज्वाला दिखायी दे, जिसपर दृष्टि पड़ते ही मनुष्योंके रोंगटे खड़े हो जायें और सेनाके वाहन भयभीत हो उठें, तो वह भय बढ़ानेवाली - महान् भयकी सूचना देनेवाली होती है, ऐसा समझना चाहिये। यदि पहले किसी उत्तम देशमें सारंगका दर्शन हो तो वह मनुष्यके लिये एक वर्षतक शुभकी सूचना देता है। उसे देखनेसे अशुभमें भी शुभ होता है। अतः यात्राके प्रथम दिन मनुष्य ऐसे गुणवाले किसी सारंगका दर्शन करे तथा अपने लिये एक वर्षतक उपर्युक्त रूपसे शुभ फलकी प्राप्ति होनेवाली समझे ॥ ३०-३६ ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'शकुन-वर्णन' रामक दो सौ इकतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २३१॥
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