लिंग पुराण : रक्तकल्प में शिव स्वरूप भगवान् वामदेव का प्रादुर्भाव तथा उनकी महिमा |

लिंग पुराण : बारहवाँ अध्याय

रक्तकल्प में शिव स्वरूप भगवान् वामदेव का प्रादुर्भाव तथा उन की महिमा

सूत उवाच

ततस्त्रिंशत्तमः कल्पो रक्तो नाम प्रकीर्तितः । 
ब्रह्मा यत्र महातेजा रक्तवर्णमधारयत् ॥ १

ध्यायतः पुत्रकामस्य ब्रह्मणः परमेष्ठिनः। 
प्रादुर्भूतो महातेजाः कुमारो रक्तभूषणः ॥ २

रक्तमाल्याम्बरधरो रक्तनेत्रः प्रतापवान् । 
स तं दृष्ट्वा महात्मानं कुमारं रक्तवाससम् ॥ ३

सूतजी बोले- तीसवाँ कल्प रक्तकल्पके नायसे प्रसिद्ध है। महान् तेजस्वी ब्रह्माने उस कल्पमें रक्तवर्ष धारण किया था  पुत्र की कामनासे ध्यानरत परमेष्ठी ब्रह्माजीके समक्ष एक महातेजस्वी तथा प्रतापी कुमार प्रकट हुआ। वह रक्तवर्णके भूषण, रक्तवर्णकी माला तथा रक्तवर्ण के वस्त्र धारण किये हुए था तथा उसके नेत्र भी रक्तवर्णदे थे लाल वस्त्र धारण किये उस महात्मा कुमारको देखकर ब्रह्माजीने परम ध्यानयोगसे यह जान लिया कि यह कुमार तो साक्षात् देवेश्वर है ॥ १ - ३॥

परं ध्यानं समाश्रित्य बुबुधे देवमीश्वरम्। 
स तं प्रणम्य भगवान् ब्रह्मा परमयन्त्रितः ॥ ४

वामदेवं ततो ब्रह्मा ब्रह्म वै समचिन्तयत्। 
तथा स्तुतो महादेवो ब्रह्मणा परमेश्वरः ॥ ५

प्रतीतहृदयः सर्व इदमाह पितामहम् । 
ध्यायता पुत्रकामेन यस्मात्तेऽहं पितामह ॥ ६

दृष्टः परमया भक्त्या स्तुतश्च ब्रह्मपूर्वकम्। 
तस्माद् ध्यानबलं प्राप्य कल्पे कल्पे प्रयत्नतः ॥ ७

वेत्स्यसे मां प्रसंख्यातं लोकधातारमीश्वरम् । 
ततस्तस्य महात्मानश्चत्वारस्ते कुमारकाः ॥ ८

सम्बभूवुर्महात्मानो विशुद्धा ब्रह्मवर्चसः । 
विरजाश्च विबाहुश्च विशोको विश्वभावनः ॥ ९

ब्रह्मण्या ब्रह्मणस्तुल्या वीरा अध्यवसायिनः । 
रक्ताम्बरधराः सर्वे रक्तमाल्यानुलेपनाः ॥ १०

उन्हें प्रणाम करके आत्मजित् भगवान् ब्रह्याने वामदेवसंज्ञक उन परमेश्वरको साक्षात् ब्रह्मस्वरूप कल्पित किया  तत्पश्चात् ब्रह्माजीके द्वारा अनेकविध स्तुति किये जानेपर प्रसन्नहृदय परमेश्वर महादेवने उन पितामहसे यह कहा हे पितामह। पुत्रकी कामनासे ध्यानपरायण आपने मेरा दर्शन प्राप्त किया और परम भक्तिसे ब्रहा अर्थात् 'वामदेवाय' मन्त्र पूर्वमें लगाकर अनेक स्तुतियोंसे मेरा स्तवन किया। अतएव आप प्रयत्नपूर्वक ध्यानब्बलका आश्रय लेकर कल्प-कल्पमें मुझ सर्वश्रेष्ठ तथा लोकके आधारस्वरूप परमेश्वरको भलीभाँति जानेंगे इसके अनन्तर ब्रह्माजीके विरजा, विबाहु, विशोक तथा विश्वभावन नामवाले चार और कुमार उत्पन्न हुए। वे सभी कुमार महान्, विशुद्ध आत्मावाले तथा ब्रह्मतेजसे सम्पन्न थे  वे सभी कुमार ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मातुल्य, और तथा अध्यवसायी थे। वे रक्तवर्णके वस्त्र तथा रक्तवर्णकी मालासे विभूषित थे। उनके शरीरमें लाल कुमकुम तथा लाल भस्म लगा हुआ था ॥ ४ - १०॥

रक्तकुङ्कुमलिप्ताङ्गा रक्तभस्मानुलेपनाः। 
ततो वर्षसहस्त्रान्ते ब्रह्मत्वेऽध्यवसायिनः ॥ ११

गृणन्तश्च महात्मानो ब्रह्म तद्वामदैविकम्। 
अनुग्रहार्थं लोकानां शिष्याणां हितकाम्यया ।॥ १२

धर्मोपदेशमखिलं कृत्वा ते ब्रह्मणः प्रियाः। 
पुनरेव महादेवं प्रविष्टा रुद्रमव्ययम् ॥ १३

येऽपि चान्ये द्विजश्रेष्ठा युञ्जाना वाममीश्वरम् । 
प्रपश्यन्ति महादेवं तद्भक्तास्तत्परायणाः ॥ १४

ते सर्वे पापनिर्मुक्ता विमला ब्रह्मचारिणः। 
रुद्रलोकं गमिष्यन्ति पुनरावृत्तिदुर्लभम् ॥ १५

तत्पश्चात् एक हजार वर्षके अनन्तर ब्रह्मभाव में लीन वे सभी ब्रह्मत्रिय महात्मा कुमार उस वामदेवरूप ब्रह्मका चिन्तन करते हुए लोकके अनुग्रह तथा शिष्योंके कल्याणकी कामनासे सम्पूर्ण धर्मोंका उपदेश करके पुनः शाश्वत महादेव रुद्रमें समाविष्ट हो गये  हे श्रेष्ठ द्विजो। इसी प्रकार परमेश्वरपरायण अन्य जो भी भक्त समाधिसे ध्यान करके ब्रह्मरूप परमेश्वर वामदेवका दर्शन करेंगे; विमल आत्मावाले ब्रह्मनिष्ठ वे सभी भक्त पापसे छूटकर उस रुद्रलोकको प्राप्त होंगे, जहाँसे जीवका पुनः संसारमें आगमन नहीं होता ॥ ११-१५ ॥

॥ इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे वामदेवमाहात्म्यं नाम द्वादशोऽध्यायः ॥ १२॥

॥ इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराण के अन्तर्गत पूर्वभाग में 'वामदेवमाहात्म्य' नामक बारहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ १२॥

लिंग पुराण: बारहवाँ अध्याय - प्रश्न-उत्तर

यहाँ पर लिंग पुराण के बारहवें अध्याय "रक्तकल्प में शिव स्वरूप भगवान वामदेव का प्रादुर्भाव तथा उनकी महिमा " पर आधारित कुछ प्रश्न-उत्तर दिए गए हैं:
  1. प्रश्न: रक्तकल्प क्या है और उसमें वामदेव का प्रादुर्भाव किस प्रकार हुआ था?

    • उत्तर: रक्तकल्प वह कल्प है जिसमें ब्रह्माजी ने रक्तवर्ण को धारण किया। इस कल्प में पुत्र की कामना से ध्यानरत परमेष्ठी ब्रह्मा के समक्ष एक महातेजस्वी और प्रतापी कुमार, वामदेव, प्रकट हुए। वामदेव ने रक्तवर्ण के भूषण, माला, वस्त्र, और रक्तवर्ण की आंखों के साथ प्रकट होकर ब्रह्माजी को अपनी महिमा का अहसास कराया।
  2. प्रश्न: वामदेव को ब्रह्माजी ने किस रूप में पहचाना?

    • उत्तर: ब्रह्माजी ने वामदेव को परम ध्यानयोग से पहचान लिया और उन्हें साक्षात देवेश्वर माना। उनका रूप और तेज देखकर ब्रह्माजी ने यह जाना कि यह कुमार महादेव के रूप में प्रकट हुए हैं।
  3. प्रश्न: वामदेव की उपासना से भक्तों को क्या लाभ होता है?

    • उत्तर: वामदेव की उपासना से भक्तों को पापमुक्ति, ब्रह्मज्ञान और शाश्वत महादेव के रुद्रलोक में प्रवेश मिलता है। रुद्रलोक वह स्थान है जहाँ से जीव का पुनर्जन्म नहीं होता।
  4. प्रश्न: वामदेव की उपासना करने के बाद ब्रह्माजी ने भक्तों को क्या वचन दिए?

    • उत्तर: ब्रह्माजी ने भक्तों से कहा कि वे मुझसे ध्यान और भक्ति के माध्यम से मुझसे परमज्ञान प्राप्त करेंगे और मुझे भलीभाँति जानने में सफल होंगे। इसके साथ ही ब्रह्माजी ने वामदेव रूपी परमेश्वर की स्तुति की।
  5. प्रश्न: वामदेव के साथ कौन-कौन से कुमार उत्पन्न हुए?

    • उत्तर: वामदेव के साथ चार अन्य कुमार उत्पन्न हुए थे, जिनके नाम थे विरजा, विबाहु, विशोक और विश्वभावन। ये सभी ब्रह्मतेज से सम्पन्न, ब्रह्मनिष्ठ और विशुद्ध आत्मा वाले थे।
  6. प्रश्न: वामदेव के दर्शन से क्या विशेष लाभ होता है?

    • उत्तर: वामदेव के दर्शन से भक्तों को ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है और वे रुद्रलोक में समाहित हो जाते हैं। वहाँ से उन्हें पुनः संसार में जन्म नहीं लेना पड़ता, और वे सदा के लिए शांति और मुक्ति प्राप्त करते हैं।
  7. प्रश्न: एक हजार वर्षों के बाद वामदेव के उपासक महात्मा क्या करते हैं?

    • उत्तर: एक हजार वर्षों तक ब्रह्मभाव में लीन महात्मा कुमार वामदेव का चिन्तन करते हुए लोककल्याण के लिए धर्मोपदेश देते हैं। फिर वे पुनः शाश्वत महादेव रुद्र में समाहित हो जाते हैं।
  8. प्रश्न: वामदेव के दर्शन से किस प्रकार के भक्त लाभान्वित होते हैं?

    • उत्तर: वे सभी भक्त जो वामदेव के दर्शन के लिए समाधि में ध्यान लगाते हैं और परमेश्वर की भक्ति करते हैं, पापमुक्त होते हैं। वे विमल आत्मा वाले और ब्रह्मनिष्ठ होते हैं और रुद्रलोक में प्रवेश करते हैं, जहाँ से वे पुनः संसार में नहीं आते।
  9. प्रश्न: वामदेव की उपासना किस प्रकार की जाती है?

    • उत्तर: वामदेव की उपासना ध्यान और भक्ति के माध्यम से की जाती है। भक्त उन्हें 'वामदेवाय' मंत्र से स्तुत करते हुए उनके दर्शन प्राप्त करते हैं और उनके दिव्य रूप की पूजा करते हैं।
  10. प्रश्न: लिंग पुराण के बारहवें अध्याय का मुख्य संदेश क्या है?

    • उत्तर: लिंग पुराण के बारहवें अध्याय का मुख्य संदेश यह है कि वामदेव रूपी महादेव की उपासना और ध्यान से भक्त पापों से मुक्ति पाते हैं, ब्रह्मज्ञान प्राप्त करते हैं और रुद्रलोक में समाहित हो जाते हैं, जहाँ उनका पुनर्जन्म नहीं होता।

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