लिंग पुराण : श्वेतलोहितकल्पमें शिवस्वरूप भगवान् सद्योजातका प्रादुर्भाव तथा उनकी महिमा |

लिंग पुराण : ग्यारहवाँ अध्याय

श्वेतलोहितकल्प में शिव स्वरूप भगवान् सद्योजात का प्रादुर्भाव तथा उनकी महिमा

कथं वै दृष्टवान् ब्रह्मा सद्योजातं महेश्वरम् । 
वामदेवं महात्मानं पुराणपुरुषोत्तमम् ॥ १

अघोरं च तथेशानं यथावद्वक्तुमर्हसि।
एकोनत्रिंशकः कल्पो विज्ञेयः श्वेतलोहितः ॥ २

तस्मिंस्तत्परमं ध्यानं ध्यायतो ब्रह्मणस्तदा। 
उत्पन्नस्तु शिखायुक्तः कुमारः श्वेतलोहितः ॥ ३

तं दृष्ट्वा पुरुषं श्रीमान् ब्रह्या वै विश्वतोमुखः । 
हृदि कृत्वा महात्मानं ब्रहारूपिणमीश्वरम् ॥ ४

सद्योजातं ततो ब्रह्मा ध्यानयोगपरोऽभवत्। 
ध्यानयोगात्परं ज्ञात्वा ववन्दे देवमीश्वरम् ॥ ५

सद्योजातं ततो ब्रह्मा ब्रह्य वै समचिन्तयत्। 
ततोऽस्य पार्श्वतः श्वेताः प्रादुर्भूता महायशाः ॥ ६

सुनन्दो नन्दनश्चैव विश्वनन्दोपनन्दनी। 
शिष्यास्ते वै महात्मानो वैस्तद् ब्रह्म सदावृतम् ॥ ७

तस्याग्रे श्वेतवर्णाभः श्वेतो नाम महामुनिः। 
विजज्ञेऽथ महातेजास्तस्माज्जज्ञे हरस्त्वसी ॥ ८

तन्त्र ते मुनयः सर्वे सद्योजातं महेश्वरम्। 
प्रपन्नाः परया भक्त्या गुणन्तो ब्रह्य शाश्वतम् ॥ ९

तस्माद्विश्वेश्वरं देवं ये प्रपद्यन्ति वै द्विजाः। 
प्राणायामपरा भूत्वा ब्रह्मतत्परमानसाः ॥ १०

ते सर्वे पापनिर्मुक्ता विमला ब्रह्मवर्चसः। 
विष्णुलोकमतिक्रम्य रुद्रलोकं व्रजन्ति ते ॥ ११

ऋषिगण बोले- हे सूतजी। ब्रह्मानीने सद्योजाठ, वामदेव, तत्पुरुष, अधीर तथा ईशानसंज्ञक सनातन पुरुषोत्तम महेश्वर शिवको किस प्रकार देखा? आप हमें मथावत् रूप्पसे यह बतानेकी कृपा कीजिये सूतजी बोले- उनतीसवाँ कल्प श्वेतलोहित नामसे जाना जाता है। उस कल्पमें जब ब्रह्माजी समाधिस्थ होकर परमेश्वरका ध्यान कर रहे थे, उसी समय शिखाधारी स्वेत्तलोहित वर्णवाला एक कुमार प्रकट हुमा उन सद्योजात कुमारको देखकर सर्वतोमुख श्रीमान् ब्रह्माजी उन्हीं ब्रह्मरूपी महात्मा परमेश्वरको हृदयमें धारण करके ध्यानयोगमें तत्पर हो गये। पुनः ध्यान- योगसे उन्हें साक्षात् परमेश्वर जानकर प्रणाम किया। ब्रह्माजीने उन सद्योजात कुमारको परात्पर ब्रहा कल्पित कर लिया तत्पश्चात् उन सद्योजात ब्रह्मके समीप ही सुनन्द, नन्दन, विश्वनन्द तथा उपनन्दन नामक श्वेतवर्णवाले चार महायशस्वी शिष्य प्रकट हुए। वे महात्मा शिष्य उन सद्योजात ब्रह्मकी सेवामें सर्वदा तत्पर रहते थे उनके आगे स्वेत वर्णकी आभावाले श्वेत नामक एक महातेजस्वी मुनि उत्पन्न हुए। उन सद्योजातसे उत्पन्न होनेके कारण उस मुनिका नाम हर भी है वहाँपर वे सभी मुनि परम भक्तिसे शाश्वत ब्रह्मरूप उन सद्योजात महेश्वरको स्तुति करते हुए उनके शरणागत हुए अतएव है द्विजी। जो प्राणी प्राणायामपरायण होकर ब्रह्मतत्परचित्तसे उन विश्वेश्वरदेवके शरणागत होते हैं; वे सभी पापोंसे मुक्त, विमल आत्मावाले तथा ब्रह्मज्ञानी हो जाते हैं और अन्तमें विष्णुलोकको भी पार करके रुद्रलोकको जाते हैं॥ १ -११॥

॥ इति श्रीनिङ्ग महापुराणे पूर्वभाणे सद्योजातमाहात्म्यं नामैकादशोऽध्यायः ॥ ११॥ 

इस प्रकार श्रीलिङ्गमहापुराणके अन्तर्गत पूर्वभागमें सद्योजातमाहात्म्य' नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ॥ ११॥

लिंग पुराण : ग्यारहवाँ अध्याय - सद्योजात महात्म्य (प्रश्न-उत्तर)

  1. प्रश्न: ब्रह्मा ने सद्योजात महेश्वर को कैसे देखा?

    उत्तर: ब्रह्मा ने सद्योजात महेश्वर को ध्यान योग में देखा। वे श्वेतलोहित रूप में प्रकट हुए, और ब्रह्मा ने उन्हें हृदय में धारण किया और प्रणाम किया।

  2. प्रश्न: श्वेतलोहित कल्प में क्या विशेष था?

    उत्तर: श्वेतलोहित कल्प में भगवान सद्योजात का प्रादुर्भाव हुआ। इस कल्प में ब्रह्माजी ध्यान में मग्न थे, और सद्योजात कुमार प्रकट हुए, जिन्हें ब्रह्मा ने परमेश्वर के रूप में जाना।

  3. प्रश्न: श्वेतलोहित कुमार का रूप कैसा था?

    उत्तर: श्वेतलोहित कुमार का रूप शिखायुक्त और श्वेत वर्ण का था। वे ब्रह्मा के ध्यान से प्रकट हुए।

  4. प्रश्न: भगवान सद्योजात के पास कौन-कौन से शिष्य प्रकट हुए?

    उत्तर: सद्योजात महेश्वर के पास चार श्वेतवर्ण महायशस्वी शिष्य प्रकट हुए, जिनके नाम थे - सुनन्द, नन्दन, विश्वनन्द और उपनन्दन।

  5. प्रश्न: सद्योजात महेश्वर के साथ कौन और प्रकट हुआ?

    उत्तर: उनके समीप एक महातेजस्वी मुनि श्वेत नामक प्रकट हुए, जिनका नाम हर भी था। वे सद्योजात से उत्पन्न हुए थे।

  6. प्रश्न: उन मुनियों का क्या कार्य था?

    उत्तर: वे मुनि सद्योजात महेश्वर की स्तुति करते हुए उनके शरणागत हुए और शाश्वत ब्रह्म रूप की पूजा करते थे।

  7. प्रश्न: ब्रह्माजी ने सद्योजात महेश्वर की महिमा को किस रूप में जाना?

    उत्तर: ब्रह्माजी ने ध्यान योग से सद्योजात महेश्वर की महिमा को जानकर उनका पूजन किया। उन्होंने उन्हें परमेश्वर के रूप में माना और प्रणाम किया।

  8. प्रश्न: कौन से लोग भगवान सद्योजात के शरण में आते हैं?

    उत्तर: वे लोग जो प्राणायाम परायण होकर ब्रह्मतत्त्व में रत होते हैं, वे भगवान सद्योजात के शरण में आते हैं।

  9. प्रश्न: भगवान सद्योजात के शरण में आने से क्या लाभ होता है?

    उत्तर: वे लोग पापों से मुक्त होते हैं, विमल आत्मा और ब्रह्मज्ञानी बनते हैं। अंत में वे विष्णुलोक को पार करके रुद्रलोक पहुंचते हैं।

  10. प्रश्न: ब्रह्माजी ने किस प्रकार सद्योजात कुमार को परात्पर ब्रह्म के रूप में मान लिया?

    उत्तर: ब्रह्माजी ने ध्यान योग से सद्योजात कुमार को परात्पर ब्रह्म के रूप में मानते हुए उन्हें प्रणाम किया और उनकी महिमा का वृतांत किया।

इस प्रकार, लिंग पुराण के ग्यारहवें अध्याय में सद्योजात महेश्वर की महिमा, उनके दर्शन और उनके शरणागत होने के लाभों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

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