वसंत पंचमी के दिन पढ़े माँ सरस्वती की चालीसा का पाठ ,पढ़ने के फायदे , Benefits of reading Maa Saraswati's Chalisa on the day of Vasant Panchami

वसंत पंचमी  के दिन पढ़े  माँ  सरस्वती की चालीसा का पाठ

देवी सरस्वती की विशेष पूजा “वसंत पंचमी” के दिन भी की जाती है। देवी सरस्वती की महिमा का वर्णन “Saraswati Chalisa” में किआ गया है। तो आइए आज आप और में मिल कर विद्या की देवी माँ सरस्वती की “श्री सरस्वती चालीसा” का पाठ करे और माँ की विशेष कृपा पाए..!! तो बोलिये माँ सरस्वती जी की जय…!!!

श्री सरस्वती चालीसा

॥दोहा॥

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि,
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि,
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु,
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु !

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी,
जय जय जय वीणाकर धारी।करती सदा सुहंस सवारी,
रूप चतुर्भुज धारी माता।सकल विश्व अन्दर विख्याता,
जग में पाप बुद्धि जब होती।तब ही धर्म की फीकी ज्योति !!

तब ही मातु का निज अवतारी।पाप हीन करती महतारी,
वाल्मीकिजी थे हत्यारा।तव प्रसाद जानै संसारा,
रामचरित जो रचे बनाई।आदि कवि की पदवी पाई,
कालिदास जो भये विख्याता।तेरी कृपा दृष्टि से माता !!

तुलसी सूर आदि विद्वाना।भये और जो ज्ञानी नाना,
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।केव कृपा आपकी अम्बा,
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।दुखित दीन निज दासहि जानी,
पुत्र करहिं अपराध बहूता।तेहि न धरई चित माता !!

राखु लाज जननि अब मेरी।विनय करउं भांति बहु तेरी,
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।कृपा करउ जय जय जगदंबा,
मधुकैटभ जो अति बलवाना।बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना,
समर हजार पाँच में घोरा।फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा !!

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।बुद्धि विपरीत भई खलहाला,
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।पुरवहु मातु मनोरथ मेरी,
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।क्षण महु संहारे उन माता,
रक्त बीज से समरथ पापी।सुरमुनि हदय धरा सब काँपी !!

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।बारबार बिन वउं जगदंबा,
जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा।क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा,
भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई।रामचन्द्र बनवास कराई,
एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा !!

को समरथ तव यश गुन गाना।निगम अनादि अनंत बखाना,
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।जिनकी हो तुम रक्षाकारी,
रक्त दन्तिका और शताक्षी।नाम अपार है दानव भक्षी,
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा !!

दुर्ग आदि हरनी तू माता।कृपा करहु जब जब सुखदाता,
नृप कोपित को मारन चाहे।कानन में घेरे मृग नाहे,
सागर मध्य पोत के भंजे।अति तूफान नहिं कोऊ संगे,
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।हो दरिद्र अथवा संकट में !!

नाम जपे मंगल सब होई।संशय इसमें करई न कोई,
पुत्रहीन जो आतुर भाई।सबै छांड़ि पूजें एहि भाई,
करै पाठ नित यह चालीसा।होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा,
धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।संकट रहित अवश्य हो जावै!!

भक्ति मातु की करैं हमेशा।निकट न आवै ताहि कलेशा,
बंदी पाठ करें सत बारा।बंदी पाश दूर हो सारा,
रामसागर बाँधि हेतु भवानी।कीजै कृपा दास निज जानी !!


॥दोहा॥

मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही दे दातु॥

माँ  सरस्वती की चालीसा का पाठ ,पढ़ने के फायदे 

  • बुध ग्रह मजबूत
माँ सरस्वती की चालीसा का पाठ करने से जातक / जातिका की कुंडली मे बुध ग्रह मजबूत होता है। बुध ग्रह बुद्धि , वाणी , संगीत, व्यापार को प्रदर्शित करता है एवँ माँ सरस्वती बुद्धि , वाणी की देवी है अतः सरस्वती चालीसा का पाठ नित्य करने से बुध ग्रह मजबूत होता है।
  • अहंकार को दूर होता है
दुनिया यदि असफलता का कोई सबसे बड़ा कारण है तो वह अहंकार है। इसका सीधा उदहारण है रावण, अपने अहंकार के कारण ही रावण को असफलता का सामना करना पड़ा। माँ सरस्वती चालीसा का पाठ नित्य करने से व्यक्ति अपने जीवन मे अहंकार से दूर जाते हुए सच्चाई को प्राप्त करता है। व्यक्ति के अंदर से अहंकार धीरे धीरे समाप्त होने लगता है।
  • ज्ञानवान बनाता है
मां सरस्वती , वीणावादिनी की चालीसा का नित्य पाठ करने से व्यक्ति अंधकार से निकलकर ज्ञानवान बनता है। उनके जीवन में वह माँ सरस्वती की कृपा एवँ अपने ज्ञान से हर परिस्थिति का सामना आसानी से कर लेते है।
  • यश, ऐश्वर्य बढ़ाता है
माँ सरस्वती की चालीसा का नित्य पाठ करने से व्यक्ति में तेज बढ़ता है जिसके कारण व्यक्ति का समाज एवँ हर क्षेत्र में यश व ऐश्वर्य बढ़ता है ।
  • एकाग्रचित्त मन
माँ सरस्वती की चालीसा का पठन विद्यार्थियों को नित्य करना चाहिए । माँ वीणावादिनी, शुभ्रवसना की चालीसा का पाठ करने से विद्यार्थियों का मन एकाग्रचित्त होता है जिससे विद्यार्थी तरक्की की ओर अग्रसर होते है। विद्यार्थियों के साथ साथ जो भी व्यक्ति सरस्वती चालीसा का पाठ करते है उनका मन शांत एवँ एकाग्रचित्त रहता है।

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