प्राचीनकाल से तुलसी का प्रयोग विधि खांसी और जुकाम आदि में,Since ancient times, Tulsi has been used for cough and cold etc

प्राचीनकाल से तुलसी  का प्रयोग विधि खांसी और जुकाम आदि में

तुलसी का इतिहास

तुलसी का उपयोग लंबे समय से पाक परंपराओं में किया जाता रहा है, लेकिन इसका इतिहास समाज में अन्य उपयोगों से समृद्ध है। प्राचीन मिस्र में, तुलसी का उपयोग संभवतः शव-संश्लेषण और संरक्षित जड़ी-बूटी के रूप में किया जाता था क्योंकि यह कब्रों और ममियों में पाया गया है। शायद इसके शवलेपन अनुप्रयोगों के कारण, तुलसी ग्रीस में शोक का प्रतीक भी थी, जहां इसे बेसिलिकॉन फूटन के नाम से जाना जाता था , जिसका अर्थ है शानदार, शाही या राजसी जड़ी बूटी। अन्य औषधीय हर्बल परंपराओं के अलावा, प्राचीन भारत की पारंपरिक औषधीय प्रणाली, आयुर्वेद जैसी प्राचीन पारंपरिक दवाओं में भी तुलसी का एक मजबूत इतिहास है। तुलसी इतिहास के माध्यम से विविध सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक अर्थ भी रखती है। उदाहरण के लिए, यहूदी लोककथाओं में माना जाता है कि तुलसी उपवास के दौरान ताकत बढ़ाती है। पुर्तगाल में, तुलसी के पौधे कुछ धार्मिक छुट्टियों पर किसी प्रियजन या प्रेमी को उपहार का हिस्सा बनते हैं। जबकि प्राचीन ग्रीस में तुलसी घृणा का प्रतीक थी। ये जड़ी-बूटी के स्थायी सांस्कृतिक महत्व के कुछ उदाहरण हैं।

प्राचीनकाल से तुलसी  का प्रयोग विधि

भारतीय चिकित्सक प्राचीनकाल से खांसी-जुकाम आदि में तुलसी का प्रयोग करते आए हैं। 'चरक संहिता' (चिकित्सा स्थान अ० ५८- ७८) के अनुसार खांसी में छोटी मक्खी के शहद के साथ तुलसी का रस विशेष लाभदायक होता है। 'चरक' में भी यही कहा गया है कि दमा (श्वांस) को ठीक करने वाली प्रमुख औषधियों में से तुलसी एक है।
  • साधारण खांसी में तुलसी के पत्ते और अडूसा के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से शीघ्र लाभ होता है।
  • तुलसी के बीज, गिलोय, सौंठ, कटेरी की जड़ समान भाग पीसकर छान लें, इसमें से आधा माशा चूर्ण शहद के साथ खाने से खांसी में लाभ होता है।
  • कुकर खांसी में तुलसी मंजरी और अदरक को बराबर लेकर पीसकर शहद में मिलाकर चाटें।
  • तुलसी की मंजरी, बच, पीपल आधा-आधा तोला और मिश्री दो तोला लेकर एक सेर पानी में औटाएँ, जब आधा रह जाए तो छानकर रख लें। इसको एक-एक छटांक दिन में कई बार सेवन करने से कुकर खांसी में लाभ होता है।
  • छोटे बच्चों की खांसी में तुलसी की पत्ती ४ रत्ती और ककड़ासिंघी तथा अतीस दो-दो रत्ती शहद में मिलाकर माँ के दूध के साथ देने से फायदा होता है।
  • तुलसी का रस और मुलहठी का सत मिलाकर चाटने से खांसी दूर होती है।
  • तुलसी और कसौंदी की पत्ती का रस मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।
  • चार-पाँच लौंग भूनकर तुलसी पत्र के साथ लेने से सब तरह की खांसी में लाभ पहुँचता है।
  • सूखी खांसी में अगर गला बैठ गया हो तो तुलसी पत्र, खसखस (पोस्त का दाना) तथा मुलहठी पीसकर समान भाग लाल बूरा या खांड मिलाकर गुनगुने पानी के साथ सेवन करें।
  •  तुलसी पत्र आधा तोला, गेहूँ का चोकर एक तोला, मुलहठी आधा तोला पावभर पानी में पकाएँ। आधा रह जाने पर छानकर थोड़ा देशी बूरा या खांड मिलाकर पीने से शीघ्र ही खांसी दूर होती है।
  • तुलसी पत्र, हलदी और कालीमिर्च का उपर्युक्त विधि बनाया काढ़ा भी जुकाम और हरारत में लाभ करता है।
तुलसी की लकड़ी का उपयोग कैसे करें?

शास्त्रों के अनुसार तुलसी की लकड़ी को नहाने से पानी में डालकर स्नान करने से निगेटिव एनर्जी दूर हो जाती है और पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता है. - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तुलसी की लकड़ी को नहाने से पानी में डालकर स्नान करने से व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है. अगर कोई परेशानी आ रही है तो वह दूर हो जाती है.

तुलसी के औषधीय उपयोग क्या है?

तुलसी के पत्तों का काढ़ा पीने से जुकाम, सिर दर्द, बुखार आदि रोगों से लाभ मिलता है। तुलसी के पत्ते चबाकर ऊपर से पानी पीने से कैंसर से लाभ मिलता है। तुलसी के पत्तों के सेवन से रक्त चाप सामान्य होता है। खांसी, दमा, इओसिनोफिल आदि में तुलसी के 10 पत्ते, एक चम्मच बायबडिंग का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।

आँख, नाक और कानों के रोग

मनुष्य शरीर में ये तीनों इंद्रियाँ बहुत महत्त्वपूर्ण और साथ ही कोमल हुआ करती हैं। अतएव इनकी किसी व्याधि में एकाएक तीव्र औषधि का व्यवहार करना उचित नहीं। तुलसी ऐसी सौम्य और निरापद औषधि है जो अपने सूक्ष्म प्रभाव से इन अंगों को शीघ्र नीरोग कर सकती है। इस संबंध में 'चरक संहिता' का निम्न वचन विशेष महत्त्वपूर्ण है -
गोरवे शिरसे शूले पीनसे अर्धभेदके। 
क्रिमी व्याधावपस्मारे घ्राणनाशे प्रपोहके ॥
अर्थात -
'तुलसी का प्रयोग मस्तक में एकत्रित दोषों को दूर करके सिर का भारीपन, मस्तक शूल, पीनस, आधा सीसी, कृमि, मृगी, सूँघने की शक्ति नष्ट होने आदि को ठीक कर देता है।'
  1. तुलसी के बीज २ माशा, रसौत २ माशा, आमा हलदी २ माशा, अफीम चार रत्ती, इन सबको घीग्वार के गूदे में मिलाकर पीस लें। इसका आखों के चारों ओर लेप करने से दरद और सुर्खी में लाभ होता है।
  2. केवल तुलसी का रस निकालकर आँखों में आँजने से भी नेत्रों की पीड़ा तथा अन्य रोग दूर होते हैं। यदि तुलसी के रस में थोड़ा असली शहद मिलाकर छानकर शीशी में रख लें तो वह आँखों में टपकाए जाने वाले उत्तम 'आईड्राप' औषधि का काम दे सकती है।
  3. आँखों में सूजन और खुजली की शिकायत होने पर तुलसी पत्रों का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी-सी फिटकरी पीसकर मिला दें। जब काढ़ा गुनगुना रहे तभी साफ रुई को उसमें भिगोक बार-बार पलकों को सेकें। पांच-पांच मिनट में दो बार सेकने से सूजन कम होकर आँखें खुल जाती हैं।
  4. अगर कान में दरद हो या श्रवण-शक्ति में कुछ गड़बड़ी जान पड़ती हो तो तुलसी का रस जरा-सा गुनगुना करके दो-चार बूँद टपकाने से आराम होता है। कान बहता हो या पीव पड़ जाने से दुर्गंध आती हो तो प्रतिदिन रस डालते रहने से लाभ होता है।
  5. अगर नाक के भीतर दरद होता हो, किसी तरह का जख्म अथवा फुंसी हो गई हो तो तुलसी के पत्तों को खूब बारीक पीसकर सूँघनी की तरह सूँघने से आराम होता है। 
  6. नाक में पीनस रोग होकर कीड़े पड़ जाने पर और दुर्गंध आने पर वन तुलसी के पत्तों का रस और कपूर मिलाकर नस्य लेना चाहिए।
तुलसी किसे नहीं लेनी चाहिए?

पवित्र तुलसी संभवतः अधिकांश लोगों के लिए सुरक्षित है; हालाँकि, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं, जो महिलाएं गर्भवती होने की कोशिश कर रही हैं, और टाइप 2 मधुमेह, हाइपोथायरायडिज्म वाले लोगों और सर्जरी से गुजरने वाले लोगों को पवित्र तुलसी से बचना चाहिए।

तुलसी की लकड़ी से दीपक जलाने से क्या होता है?

तुलसी की सूखी लकड़ी का दीपक जलाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मकता हमेशा दूर रहती है।

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