अग्नि पुराण - एक सौ उनचासवाँ अध्याय ! Agni Purana - 149 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ उनचासवाँ अध्याय ! Agni Purana - 149 Chapter !

अग्नि पुराण एक सौ उनचासवाँ अध्याय होमके प्रकार-भेद एवं विविध फलोंका कथन ! लक्षकोटिहोमः !

अग्नि पुराण - एक सौ उनचासवाँ अध्याय ! Agni Purana - 149 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ उनचासवाँ अध्याय ! Agni Purana - 149 Chapter !

ईश्वर उवाच
होमाद्रणादौ विजयो राज्याप्तिर्विघ्ननाशनं ।१४९.००१
कृच्छ्रेण शुद्धिमुत्पाद्य प्राणायामशतेन च ॥१४९.००१

अन्तर्जले च गायत्रीं जप्त्वा षोडशधाचरेत् ।१४९.००२
प्राणायामांश्च पूर्वाह्णे जुहुयात्पावके हविः ॥१४९.००२

भैक्ष्ययावकभक्षी च फलमूलाशनोऽपि वा ।१४९.००३
क्षीरशक्तुघृताहार एकमाहारमाश्रयेत् ॥१४९.००३

यावत्समाप्तिर्भवति लक्षहोमस्य पार्वति ।१४९.००४
दक्षिणा लक्षहोमान्ते गावो वस्त्राणि काञ्चनं ॥१४९.००४

सर्वोत्पातसमुत्पत्तौ पञ्चभिर्दशभिर्द्विजैः ।१४९.००५
नास्ति लोके स उत्पातो यो ह्यनेन न शाम्यति ॥१४९.००५

मङ्गल्यं परमं नास्ति यदस्मादतिरिच्यते ।१४९.००६
कोटिहोमन्तु यो राजा कारयेत्पूर्ववद्द्विजैः ॥१४९.००६

न तस्य शत्रवः सङ्ख्ये जातु तिष्ठन्ति कर्हिचित् ।१४९.००७
न तस्य मारको देशे व्याधिर्वा जायते क्वचित् ॥१४९.००७

अतिवृष्टिरनावृष्टिर्मूषकाः शलभाः शुकाः ।१४९.००८
राक्षसाद्याश्च शाम्यन्ति सर्वे च रिपवो रणे ॥१४९.००८

कोटिहोमे तु वरयेद्ब्राह्मणान्विंशतिं तथा ।१४९.००९
शतञ्चाथ सहस्रं वा यथेष्टाम्भूतिमाप्नुयात् ॥१४९.००९

कोटिहोमन्तु यः कुर्याद्द्विजो भूपोऽथवा च विट् ।१४९.०१०
यदिच्छेत्प्राप्नुयात्तत्तत्सशरीरो दिवं व्रजेत् ॥१४९.०१०

गायत्र्या ग्रहमन्त्रैर्वा कुष्माण्डीजातवेदसैः ।१४९.०११
ऐन्द्रवारुणवायव्ययाम्याग्नेयैश्च वैष्णवैः ॥१४९.०११

शाक्तेयैश्च शाम्भवैः सौरैर्मन्त्रैर्होमार्चनात्ततः ।१४९.०१२
अयुतेनाल्पसिद्धिः स्याल्लक्षहोमोऽखिलार्तिनुत् ॥१४९.०१२

सर्वपीडादिनशाय कोटिहोमोऽखिलार्थदः ।१४९.०१३
यवव्रीहितिलक्षीरघृतकुशप्रमातिकाः ॥१४९.०१३

पङ्कजोशीरविल्वाम्रदला होमे प्रकीर्तिताः ।१४९.०१४
अष्टहस्तप्रमाणेन कोटिहोमेषु खातकं ॥१४९.०१४

तस्मादर्धप्रमाणेन लक्षहोमे विधीयते ।१४९.०१५
होमोऽयुतेन लक्षेण कोद्याज्याद्यैः प्रकीर्तितः ॥१४९.०१५

इत्याग्नेये महापुराणे युद्धजयार्णवे अयुतलक्षकोटिहोमो नामोनपञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - एक सौ उनचासवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 149 Chapter!-In Hindi

भगवान् महेश्वरने कहा- देवि ! होमसे युद्धमें विजय, राज्यप्राप्ति और विघ्नोंका विनाश होता है। पहले 'कृच्छ्रव्रत' करके देहशुद्धि करे।  तदनन्तर सौ प्राणायाम करके शरीरका शोधन करे। फिर जलके भीतर गायत्री जप करके सोलह बार प्राणायाम करे। पूर्वाह्नकालमें अग्नि में आहुति समर्पित करे। भिक्षाद्वारा प्राप्त यवनिर्मित ! भोज्यपदार्थ, फल, मूल, दुग्ध, सत्तू और घृतका आहार यज्ञकालमें विहित है॥ १-३॥ 
पार्वति ! लक्ष होमकी समाप्ति-पर्यन्त एक समय भोजन करे। लक्ष-होमकी पूर्णाहुतिके पश्चात् गौ, वस्त्र एवं सुवर्णकी दक्षिणा दे। सभी प्रकारके उत्पातोंके प्रकट होनेपर पाँच या दस ऋत्विजोंसे पूर्वोक्त यज्ञ करावे। इस लोकमें ऐसा कोई उत्पात नहीं है, जो इससे शान्त न हो जाय। इससे बढ़कर परम मङ्गलकारक कोई वस्तु नहीं है। जो नरेश पूर्वोक्त विधिसे ऋत्विजोंद्वारा कोटि होम कराता है, युद्धमें उसके सम्मुख शत्रु कभी नहीं ठहर सकते हैं। उसके राज्यमें अतिवृष्टि, अनावृष्टि, मूषकोपद्रव, टिड्डीदल, शुकोपद्रव एवं भूत-राक्षस तथा युद्धमें समस्त शत्रु शान्त हो जाते हैं। कोटि-होममें बीस, सौ अथवा सहस्र ब्राह्मणोंका वरण करे। इससे यजमान इच्छानुकूल धन-वैभवकी प्राप्ति करता है। जो ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य इस कोटिहोमात्मक यज्ञका अनुष्ठान करता है, वह जिस पदार्थकी इच्छा करता है, उसको प्राप्त करता है। वह सशरीर स्वर्गलोकको जाता है ॥ ४-९२॥ 
गायत्री मन्त्र, ग्रह-सम्बन्धी मन्त्र, कूष्माण्ड- मन्त्र, जातवेदा- अग्नि-सम्बन्धी अथवा ऐन्द्र, वारुण, वायव्य, याम्य, आग्नेय, वैष्णव, शाक्त, शैव एवं सूर्यदेवता-सम्बन्धी मन्त्रोंसे होम-पूजन आदिका विधान है। अयुत-होमसे अल्प सिद्धि होती है। लक्ष होम सम्पूर्ण दुःखोंको दूर करनेवाला है। कोटि होम समस्त क्लेशोंका नाश करनेवाला और सम्पूर्ण पदार्थोंको प्रदान करनेवाला है। यव, धान्य, तिल, दुग्ध, घृत, कुश, प्रसातिका (छोटे दानेका चावल), कमल, खस, बेल और आम्रपत्र होमके योग्य माने गये हैं। कोटि-होममें आठ हाथ और लक्ष होममें चार हाथ गहरा कुण्ड बनावे। अयुत-होम, लक्ष-होम और कोटि- होममें घृतका हवन करना चाहिये ॥ १३-१५॥ 
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'युद्धजयार्णवके अन्तर्गत अयुत-लक्ष-कोटिहोम' नामक एक सौ उनचासवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १४९ ॥

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