अग्नि पुराण - एक सौ पचासवाँ अध्याय ! Agni Purana - 150 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ पचासवाँ अध्याय ! Agni Purana - 150 Chapter !

अग्नि पुराण एक सौ पचासवाँ अध्याय मन्वन्तरोंका वर्णन ! मन्वन्तराणि !

अग्नि पुराण - एक सौ पचासवाँ अध्याय ! Agni Purana - 150 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ पचासवाँ अध्याय ! Agni Purana - 150 Chapter !

अग्निरुवाच
मन्वन्तराणि वक्ष्यामि आद्याः स्वायम्भुवो मनुः ।
अग्नीध्राद्यास्तस्य सुता यमो नाम तदा सुराः ॥१५०.००१

और्वाद्याश्च सप्तर्षय इन्द्रश्चैव शतक्रतुः ।
पारावताः सतुषिता देवाः स्वारोचिषेऽन्तरे ॥१५०.००२

विपश्चित्तत्र देवेन्द्र ऊर्जस्तम्भादयो द्विजाः ।
चैत्रकिम्पुरुषाः पुत्रास्तृतीयश्चोत्तोतमो मनुः ॥१५०.००३

सुशान्तिरिन्द्रो देवाश्च सुधामाद्या वशिष्ठजाः ।
सप्तर्षयोऽजाद्याः पुत्राश्चतुर्थस्तामसी मनुः ॥१५०.००४

स्वरूपाद्याः सुरगणाः शिखिरिन्द्रः सुरेश्वरः ।
ज्योतिर्धामादयो विप्रा नव ख्यातिमुखाः सुताः ॥१५०.००५

रैवते वितथश्चेन्द्रो अमिताभास्तथा सुराः ।
हिरण्यरोमाद्या मुनयो बलबन्धादयः सुताः ॥१५०.००६

मनोजवश्चाक्षुषेऽथ इन्द्रः स्वात्यादयः सुराः ।
सुमेधाद्या महर्षयः पुरुप्रभृतयः सुताः ॥१५०.००७

विवस्वतः सुतो विप्रः श्राद्धदेवो मनुस्ततः ।
आदित्यवसुरुद्राद्या देवा इन्द्रः पुरन्दरः ॥१५०.००८

वशिष्ठः काश्यपोऽथात्रिर्जमदग्निः सगोतमः ।
विश्वामित्रभरद्वाजौ मुनयः सप्त साम्प्रतं ॥१५०.००९

इक्ष्वाकुप्रमुखाः पुत्रा अंशेन हरिराभवत् ।
स्वायम्भुवे मानसोऽभूदजितस्तदनन्तरे ॥१५०.०१०

सत्यो हरिर्देवदरो वैकुण्ठो वामनः क्रमात् ।
छायाजः सूर्यपुत्रस्तु भविता चाष्टमो मनुः ॥१५०.०११

पूर्वस्य च सवर्णोऽसौ सावर्णिर्भविताष्टमः ।
सुतपाद्या देवगणा दीप्तिमद्द्रौणिकादयः ॥१५०.०१२

मुनयो बलिरिन्द्रश्च विरजप्रमुखाः सुताः ।
नवमो दक्षसावर्णिः पाराद्याश्च तदा सुराः ॥१५०.०१३

इन्द्रश्चैवाद्भुतस्तेषां सवनाद्या द्विजोत्तमाः ।
धृतकेत्वादयः पुत्रा ब्रह्मसावर्णिरित्यतः ॥१५०.०१४

सुखादयो देवगणास्तेषां शान्तिः शतक्रतुः ।१५०.०१५
टिप्पणी
१ हिरण्यरोमाद्या ऋषय इति ञ..
२ तथा सुरा इति छ..
हविष्याद्याश्च मुनयः सुक्षेत्राद्याश्च तत्सुताः ॥१५०.०१५

धर्मसावर्णिकश्चाथ विहङ्गाद्यास्तदा सुराः ।
गणेशश्चेन्द्रो नश्चराद्या मुनयः पुत्रकामयोः ॥१५०.०१६

सर्वत्रगाद्या रुद्राख्यः सावर्णिभविता मनुः ।
ऋतधामा सुरेन्द्रश्च हरिताद्याश्च देवताः ॥१५०.०१७

तपस्याद्याः सप्तर्षयः सुता वै देववन्मुखाः ।
मनुस्त्रयोदशो रौच्यः सुत्रामाणादयः सुराः ॥१५०.०१८

इन्द्रो दिवस्पतिस्तेषां दानवादिविमर्दनः ।
निर्मोहाद्याः सप्तर्षयश्चित्रसेनादयः सुताः ॥१५०.०१९

मनुश्चतुर्दशो भौत्यः शुचिरिन्द्रो भविष्यति ।
चाक्षुषाद्याः सुरगणा अग्निबाह्णादयो द्विजाः ॥१५०.०२०

चतुर्दशस्य भौत्यस्य पुत्रा ऊरुमुखा मनोः ।
प्रवर्तयन्ति वेदांश्च भुवि सप्तर्षयो दिवः ॥१५०.०२१

देवा यज्ञभुजस्ते तु भूः पुत्रैः परिपाल्यते ।
ब्रह्मणो दिवसे ब्रह्मन्मनवस्तु चतुर्दश ॥१५०.०२२

मन्वाद्याश्च हरिर्वेदं द्वापरान्ते विभेद सः ।
आद्यो वेदश्चतुष्पादः शतसाहस्रसम्मितः ॥१५०.०२३

एकश्चासीद्यजुर्वेदस्तं चतुर्धा व्यकल्पयत् ।
आध्वर्यवं यजुर्भिस्तु ऋग्भिर्होत्रं तथा मुनिः ॥१५०.०२४

औद्गात्रं सामभिओश्चक्रे ब्रह्मत्वञ्चाप्यथर्वभिः ।
प्रथमं व्यासशिष्यस्तु पैलो ह्यृग्वेदपारगः ॥१५०.०२५

इन्द्रः प्रमतये प्रादाद्वास्कलाय च संहितां ।
बौध्यादिभ्यो ददौ सोपि चतुर्धा निजसंहितां ॥१५०.०२६

यजुर्वेदतरोः शाखाः सप्तविंशन्महामतिः ।
वैशम्पायननामासौ व्यासशिष्यश्चकार वै ॥१५०.०२७

काण्वा वाजसनेयाद्या याज्ञवल्क्यादिभिः स्मृताः ।
सामवेदतरोः शाखा व्यासशिष्यः सजैमिनिः ॥१५०.०२८

सुमन्तुश्च सुकर्मा च एकैकां संहितां ततः ।
गृह्णते च सुकर्माख्यः सहस्रं संहितां गुरुः ॥१५०.०२९

सुमन्तुश्चाथर्वतरुं व्यासशिष्यो विभेद तं ।
शिष्यानध्यापयामास पैप्यलादान् सहस्रशः ॥१५०.०३०

पुराणसंहितां चक्रे सुतो व्यासप्रसादतः ॥३१॥ १५०.०३१
इत्याग्नेये महापुराणे मन्वन्तराणि नाम पञ्चाशदधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - एक सौ पचासवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 150 Chapter!-In Hindi

अग्निदेव कहते हैं- अब मैं मन्वन्तरोंका वर्णन करूँगा। सबसे प्रथम स्वायम्भुव मनु हुए हैं। उनके आग्नीध्र आदि पुत्र थे। स्वायम्भुव मन्वन्तरमें यम नामक देवता, और्व आदि सप्तर्षि तथा शतक्रतु इन्द्र थे। दूसरे मन्वन्तरका नाम था- स्वारोचिष; उसमें पारावत और तुषित नामधारी देवता थे। स्वरोचिष मनुके चैत्र और किम्पुरुष आदि पुत्र थे। उस समय विपश्चित् नामक इन्द्र तथा उर्जस्वन्त आदि द्विज (सप्तर्षि) थे। तीसरे मनुका नाम उत्तम हुआ; उनके पुत्र अज आदि थे। उनके समयमें सुशान्ति नामक इन्द्र, सुधामा आदि देवता तथा वसिष्ठके पुत्र सप्तर्षि थे। चौथे मनु तामस नामसे विख्यात हुए; उस समय स्वरूप आदि देवता, शिखरी इन्द्र, ज्योतिर्होम आदि ब्राह्मण (सप्तर्षि) थे तथा उनके ख्याति आदि नौ पुत्र हुए ॥ १-५ ॥
रैवत नामक पाँचवें मन्वन्तरमें वितथ इन्द्र, अमिताभ देवता, हिरण्यरोमा आदि मुनि तथा बलबन्ध आदि पुत्र थे। छठे चाक्षुष मन्वन्तरमें मनोजव नामक इन्द्र और स्वाति आदि देवता थे। सुमेधा आदि महर्षि और पुरु आदि मनु-पुत्र थे। तत्पश्चात् सातवें मन्वन्तरमें सूर्यपुत्र श्राद्धदेव मनु हुए। इनके समयमें आदित्य, वसु तथा रुद्र आदि देवता; पुरन्दर नामक इन्द्र; वसिष्ठ, काश्यप, अत्रि जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र तथा भद्धाज सप्तर्षि हैं। यह वर्तमान मन्वन्तरका वर्णन है। वैवस्वत मनुके इक्ष्वाकु आदि पुत्र थे। इन सभी मन्वन्तरोंमें भगवान् श्रीहरिके अंशावतार हुए हैं। स्वायम्भुव मन्वन्तरमें भगवान् 'मानस' के नामसे प्रकट हुए थे। तदनन्तर शेष छः मन्वन्तरोंमें क्रमशः अजित, सत्य, हरि, देववर, वैकुण्ठ और वामन रूपमें श्रीहरिका प्रादुर्भाव हुआ। छायाके गर्भसे उत्पन्न सूर्यनन्दन सावर्णि आठवें मनु होंगे ॥ ६-११॥
वे अपने पूर्वज (ज्येष्ठ भ्राता) श्राद्धदेवके समान वर्णवाले हैं, इसलिये 'सावर्णि' नामसे विख्यात होंगे। उनके समयमें सुतपा आदि देवता, परम तेजस्वी अश्वत्थामा आदि सप्तर्षि, बलि इन्द्र और विरज आदि मनुपुत्र होंगे। नवें मनुका नाम दक्षसावर्णि होगा। उस समय पार आदि देवता होंगे। उन देवताओंके इन्द्रकी 'अद्भुत' संज्ञा होगी। उनके समयमें सवन आदि श्रेष्ठ ब्राह्मण सप्तर्षि होंगे और 'धृतकेतु' आदि मनुपुत्र। तत्पश्चात् दसवें मनु ब्रह्मसावर्णिके नामसे प्रसिद्ध होंगे। उस समय सुख आदि देवगण, शान्ति इन्द्र, हविष्य आदि मुनि तथा सुक्षेत्र आदि मनुपुत्र होंगे ॥ १२-१५॥ तदनन्तर धर्मसावर्णि नामक ग्यारहवें मनुका अधिकार होगा। उस समय विहङ्ग आदि देवता, गण इन्द्र, निश्वर आदि मुनि तथा सर्वत्रग आदि मनुपुत्र होंगे। इसके बाद बारहवें मनु रुद्रसावर्णिके नामसे विख्यात होंगे। उनके समयमें ऋतधामा नामक इन्द्र और हरित आदि देवता होंगे। तपस्य आदि सप्तर्षि और देववान् आदि मनुपुत्र होंगे। तेरहवें मनुका नाम होगा रौच्य। उस समय सूत्रामणि आदि देवता तथा दिवस्पति इन्द्र होंगे, जो दानव-दैत्य आदिका मर्दन करनेवाले होंगे। रौच्य मन्वन्तरमें निर्मोह आदि सप्तर्षि तथा चित्रसेन प्रसिद्ध होंगे। उनके समयमें शुचि इन्द्र, चाक्षुष आदि देवता तथा अग्निबाहु आदि सप्तर्षि होंगे। चौदहवें मनुके पुत्र ऊरु आदिके नामसे विख्यात होंगे ॥ १६-२० ॥ 
सप्तर्षि द्विजगण भूमण्डलपर वेदोंका प्रचार करते हैं, देवगण यज्ञ-भागके भोक्ता होते हैं तथा मनुपुत्र इस पृथ्वीका पालन करते हैं। ब्रह्मन् ! ब्रह्माके एक दिनमें चौदह मनु होते हैं। मनु, देवता तथा इन्द्र आदि भी उतनी ही बार होते हैं। प्रत्येक द्वापरके अन्तमें व्यासरूपधारी श्रीहरि वेदका विभाग करते हैं। आदि वेद एक ही था, जिसमें चार चरण और एक लाख ऋचाएँ थीं। पहले एक ही यजुर्वेद था, उसे मुनिवर व्यासजीने चार भागोंमें विभक्त कर दिया। उन्होंने अध्वर्युका काम यजुर्भागसे, होताका कार्य ऋऋऋवेदकी ऋचाओंसे, उद्‌गाताका कर्म साम-मन्त्रोंसे तथा ब्रह्माका कार्य अथर्ववेदके मन्त्रोंसे होना निश्चित किया। व्यासके प्रथम शिष्य पैल थे, जो ऋग्वेदके पारंगत पण्डित हुए ॥ २१-२५॥
इन्द्रने प्रमति और बाष्कलको संहिता प्रदान की। बाष्कलने भी बौध्य आदिको चार भागोंमें विभक्त अपनी संहिता दी। व्यासजीके शिष्य परम बुद्धिमान् वैशम्पायनने यजुर्वेदरूप वृक्षकी सत्ताईस शाखाएँ निर्माण कीं। काण्व और वाजसनेय आदि शाखाओंको याज्ञवल्क्य आदिने सम्पादित किया है। व्यास-शिष्य जैमिनिने सामवेदरूपी वृक्षकी शाखाएँ बनायीं। फिर सुमन्तु और सुकर्माने एक- एक संहिता रची। सुकर्माने अपने गुरुसे एक हजार संहिताओंको ग्रहण किया। व्यास-शिष्य सुमन्तुने अथर्ववेदकी भी एक शाखा बनायी तथा उन्होंने पैप्पल आदि अपने सहस्त्रों शिष्योंको उसका अध्ययन कराया। भगवान् व्यासदेवजीकी कृपासे सूतने पुराण संहिताका विस्तार किया ॥ २६-३१॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'मन्वन्तरोंका वर्णन नामक एक सौ पंचासवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १५०

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