अग्नि पुराण - अस्सीवाँ अध्याय ! Agni Purana - 80 Chapter !

अग्नि पुराण - अस्सीवाँ अध्याय ! Agni Purana - 80 Chapter !

अग्नि पुराण अस्सीवाँ अध्याय दमन का रोपण की विधि का वर्णन ! दमनकारोहणविधिर्नाम !
अग्नि पुराण - अस्सीवाँ अध्याय ! Agni Purana - 80 Chapter !

अग्नि पुराण - अस्सीवाँ अध्याय ! Agni Purana - 80 Chapter !

भगवान् महेश्वर

वक्ष्ये दमनकारोहविधिं पूर्ववदाचरेत् ।
हरकोपात् पुरा जातो भैरवो दमिताः सुराः ॥००१॥

तेनाथ शप्तो विटपो भवेति त्रिपुरारिणा ।
प्रसन्नेनेरितं चेदं पूजयिष्यन्ति ये नराः ॥००२॥

परिपूर्णफलं तेषां नान्यथा ते भविष्यति ।
सप्तम्यां वा त्रयोदश्यां दमनं संहितात्मभिः ॥००३॥

सम्पूज्य बोधयेद्वृक्षं भववाक्येन मन्त्रवित् ।
हरप्रसादसम्भूत त्वमत्र सन्निधीभव ॥००४॥

शिवकार्यं समुद्दिश्य नेतव्यो ऽसि शिवाज्ञया ।
गृहे ऽप्यामन्त्रणं कुर्यात् सायाह्ने चाधिवासनं ॥००५॥

यथाविधि समभ्यर्च्य सूर्यशङ्करपावकान् ।
देवस्य पश्चिमे मूलं दद्यात्तस्य मृदा युतं ॥००६॥

वामेन शिरसा वाथ नालं धात्रीं तथोत्तरे ।
दक्षिणे भग्नपत्रञ्च प्राच्यां पुष्पञ्च धारणं ॥००७॥

पुटिकास्थं फलं मूलमथैशान्यां यजेच्छिवं ।
पञ्चाङ्गमञ्जलौ कृत्वा आमन्त्र्य शिरसि न्यसेत् ॥००८॥

आमन्त्रितो ऽसि देवेश प्रातःकाले1 मया प्रभो ।
कर्तव्यस्तपसो लाभः पूर्णं सर्वं तवाज्ञया ॥००९॥

मूलेन शेषं पात्रस्थं पिधायाथ पवित्रकं ।
प्रातः स्नात्वा जगन्नाथं गन्धपुष्पादिभिर्यजेत् ॥०१०॥

नित्यं नैमित्तिकं कृत्वा दमनैः पूजयेत्ततः ।
शेषमञ्जलिमादाय आत्मविद्याशिवात्मभिः ॥०११॥

मूलाद्यैर् ईश्वरान्तैश् च चतुर्थाञ्जलिना ततः ।
ॐ हौं मखेश्वराय मखं पूरय शूलपाणये नमः ॥०१२॥

शिवं वह्निं च सम्पूज्य गुरुं प्रार्च्याथ बोधयेत् ॥०१२॥
भगवन्नतिरिक्तं वा हीनं वा यन्मया कृतं ।

सर्वं तदस्तु सम्पूर्णं यच्च दामनकं मम ।०१३।
सकलं चैत्रमासोत्थं फलं प्राप्य दिवं व्रजेत् ॥०१३॥

इत्य् आदिमहापुराणे आग्नेये दमनकारोहणविधिर्नाम अशीतितमो ऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - अस्सीवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 80 Chapter!-In Hindi

भगवान् महेश्वर कहते हैं- स्कन्द ! अब मैं दमनकारोपणकी विधिका वर्णन करूँगा। इसमें भी सब कार्य पूर्ववत् करने चाहिये। प्राचीन कालमें भगवान् शंकरके कोपसे भैरवकी उत्पत्ति हुई। भैरवने देवताओंका दमन आरम्भ किया। यह देख त्रिपुरारि शिवने रुष्ट होकर भैरवको शाप दिया - 'तुम वृक्ष हो जाओ।' फिर भैरवके क्षमा माँगनेपर प्रसन्न हो भगवान् शिव बोले- 'जो मनुष्य तुम्हारे पत्रोंद्वारा पूजन करेंगे, अथवा तुम्हारी पूजा करेंगे, उनका मनोवाञ्छित फल पूरा होगा। उनकी इच्छा किसी तरह अपूर्ण नहीं रहेगी।' सप्तमी या त्रयोदशी तिथिको मन्त्रवेत्ता पुरुष संहिता-मन्त्रोंसे दमनक-वृक्षकी पूजा करके उसे भगवान् शंकरके वाक्यका स्मरण दिलाते हुए जगावे - ॥ १-३३ ॥
हरप्रसादसम्भूत त्वमत्र संनिधीभव । शिवकार्य समुद्दिश्य नेतव्योऽसि शिवाज्ञया ॥ 'दमनक! तुम भगवान् शंकरके कृपाप्रसादसे प्रकट हुए हो। तुम यहाँ संनिहित हो जाओ। भगवान् शिवकी आज्ञासे उन्हींके कार्यके उद्देश्यसे मुझे तुम्हें अपने साथ ले जाना है।' घरपर भी उस वृक्षको आमन्त्रित करे और सायंकालमें अधिवासन- कर्म सम्पन्न करे। विधिपूर्वक सूर्य, शंकर और अग्निदेवकी पूजा करके, इष्टदेवताके पश्चिम भागमें मिट्टीके साथ संयुक्त करके उस वृक्षकी जड़को स्थापित करे। वामदेव-मन्त्र अथवा शिरोमन्त्रसे उस वृक्षकी नाल तथा आँवलेका फल उत्तर दिशामें रखे। उसके टूटे हुए पत्रको दक्षिणमें तथा पुष्प और धावनको पूर्वमें स्थापित करे ॥ ४-७॥ 
ईशानकोणमें एक दोनेमें उसके फल और मूलको रखकर भगवान् शिवका पूजन करे। उस वृक्षकी जड़, नाल, पत्र, फूल और फल इन पाँचों अङ्गोंको अञ्जलिमें लेकर आमन्त्रित करते हुए सिरपर रखे और इस प्रकार कहे 'देवेश्वर! मैं आज आपको निमन्त्रित करता हूँ। कल प्रातःकाल मुझे तपस्याका लाभ लेना है- की हुई उपासनाको सफल बनाना है। वह सब कार्य आपकी आज्ञासे पूर्ण हो।' तत्पश्चात् पात्रमें रखे हुए शेष पवित्रकको मूल-मन्त्रसे ढककर प्रातःकाल स्नान करनेके पश्चात् जगदीश्वर शिवका गन्ध-पुष्प आदिसे पूजन करे ॥ ८-१० ॥
तदनन्तर नित्य-नैमित्तिक कर्म करके दमनकसे पूजन करे। शेष दमनकको अञ्जलिमें लेकर 'ॐ हां आत्मतत्त्वाधिपतये शिवाय स्वाहा।', 'ॐ हां विद्यातत्त्वाधिपतये शिवाय स्वाहा।', 'ॐ हां शिवतत्त्वाधिपतये शिवाय स्वाहा।', 'ॐ हां सर्वतत्त्वाधिपतये शिवाय स्वाहा।'- इन चार मन्त्रोंद्वारा दमनक चढ़ाकर शिवका पूजन करना चाहिये। तदनन्तर दमनककी चौथी अञ्जलि लेकर 'ॐ हौं महेश्वराय मखं पूरय पूरय शूलपाणये नमः।'- इस मन्त्रके उच्चारणपूर्वक भगवान् शिवको अर्पित करे ॥ ११-१३॥
इस प्रकार शिव और अग्निकी पूजा करके गुरुकी विशेषरूपसे अर्चना करते हुए प्रार्थना करे- 'भगवन्! मैंने दमनकद्वारा पूजनकर्ममें जो न्यूनता या अधिकता कर दी है, वह सब आपकी कृपासे परिपूर्ण हो जाय।' इस रीतिसे दमनकारोपण- कर्मका सम्पादन करके मनुष्य चैत्रमासजनित सम्पूर्ण फलको पाता है और अन्तमें स्वर्ग- लोकको जाता है ॥ १४-१५॥ 
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'दमनकारोपणकी विधिका वर्णन' नामक अस्सीवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ८० ॥

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