अग्नि पुराण - एक सौ बयासीवाँ अध्याय ! Agni Purana - 182 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ बयासीवाँ अध्याय ! Agni Purana 182 Chapter !

अग्नि पुराण एक सौ बयासीवाँ - सप्तमीव्रतानि

अग्निरुवाच

सप्तमीव्रतकं वक्ष्ये सर्वेषां भुक्तिमुक्तिदं ।
माघमासेऽब्जके शुक्ले सूर्यं प्रार्च्य विशोकभाक् ॥१

सर्वावाप्तिस्तु सप्तभ्यां मासि भाद्रेऽर्कपूजनात् ।
पौषे मासि सितेऽनश्नन् प्रार्च्यार्कं पापनाशनं ॥२

कृष्णपक्षे तु माघस्य सर्वावाप्तिस्तु सप्तमी ।
फाल्गुने तु सिते नन्दा सप्तमी चार्कपूजनात् ॥३

मार्गशीर्षे सिते प्रार्च्य सप्तमी चापराजिता ।
मार्गशीर्षे सिते चाब्दं पुत्रीया सप्तमी स्त्रियाः ॥४

इत्याग्नेये महा पुराणे सप्तमीव्रतानि नाम द्व्यशीत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - एक सौ बयासीवाँ अध्याय !-हिन्दी मे Agni Purana 182 Chapter ! In Hindi

एक सौ बयासीवाँ अध्याय सप्तमी तिथि के व्रत

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! अब मैं सप्तमी तिथिके व्रत कहूँगा। यह सबको भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है। माघ मासके शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को (अष्टदल अथवा द्वादशदल) कमल का निर्माण करके उसमें भगवान् सूर्य का पूजन करना चाहिये। इससे मनुष्य शोकरहित हो जाता है ॥ १ ॥ 

भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को भगवान् आदित्य का पूजन करने से समस्त अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होती है। पौष मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी को निराहार रहकर सूर्य देव का पूजन करने से सारे पापों का विनाश होता है॥ २॥ 

माघके कृष्णपक्षमें 'सर्वाप्ति-सप्तमी'का व्रत करना चाहिये। इससे सभी अभीष्ट वस्तुओंकी प्राप्ति होती है। फाल्गुन के कृष्णपक्षमें 'नन्द- सप्तमी' का व्रत करना चाहिये। मार्गशीर्षके शुक्ल- पक्षमें 'अपराजिता सप्तमी' को भगवान् सूर्यका पूजन और व्रत करना चाहिये। एक वर्षतक मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष का 'पुत्रीया सप्तमी' व्रत स्त्रियों को पुत्र प्रदान करने वाला है ॥ ३-४ ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'सप्तमीके व्रतोंका वर्णन' नामक एक सौ बयासीवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १८२॥

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