अग्नि पुराण - एक सौ तिरानबेवाँ अध्याय ! Agni Purana - 193 Chapter !

अग्नि पुराण एक सौ तिरानबेवाँ अध्याय ! Agni Purana 193 Chapter !

एक सौ तिरानबेवाँ - शिव रात्रि व्रतम्

अग्निरुवाच

शिवरात्रिव्रतं वक्ष्ये भुक्तिमुक्तिप्रदं शृणु।
माघफाल्गुनयोर्मध्ये कृष्णा या तु चतुर्दशी ॥१

कामयुक्ता तु सोपोष्या कुर्वन् जागरणं व्रती ।
शिवरात्रिव्रतं कुर्वे चतुर्दश्यामभोजनं ॥२

रात्रिजागरणेनैव पूजयामि शिवं व्रती ।
आवाहयाम्यहं शम्भुं भुक्तिमुक्तिप्रदायकं ॥३

नरकार्णवकोत्तारनावं शिव नमोऽस्तु ते ।
नमः शिवाय शान्ताय प्रजाराज्यादिदायिने ॥४

सौभाग्यारोग्यविद्यार्थस्वर्गमार्गप्रदायिने।
धर्मन्देहि धनन्देहि कामभोगादि देहि मे ॥५

गुणकीर्तिसुखं देहि स्वर्गं मोक्षं च देहि मे ।
लुब्धकः प्राप्तवान् पुण्यं पापी सुन्दरसेनकः ॥६

इत्याग्नेये महापुराणे शिवरात्रिव्रतं नाम त्रिनवत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण एक सौ तिरानबेवाँ अध्याय हिन्दी मे - Agni Purana 193 Chapter !-In Hindi

एक सौ तिरानबेवाँ अध्याय शिवरात्रि-व्रत

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! अब मैं भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले 'शिवरात्रि व्रत' का वर्णन करता हैं; एकाग्रचित्तसे उसका श्रवण करो। फाल्गुनके कृष्ण पक्षकी चतुर्दशी को मनुष्य कामना सहित उपवास करे। व्रत करनेवाला रात्रिको जागरण करे और यह कहे मैं चतुर्दशीको भोजनका परित्याग करके शिवरात्रिका व्रत करता हूँ। मैं व्रतयुक्त होकर रात्रि जागरणके द्वारा शिवका पूजन करता हूँ। मैं भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले शंकरका आवाहन करता हूँ।

शिव! आप नरक समुद्रसे पार कराने वाली नौका के समान हैं; आपको नमस्कार है। आप प्रजा और राज्यादि प्रदान करनेवाले, मङ्गलमय एवं शान्तस्वरूप हैं; आपको नमस्कार है। आप सौभाग्य, आरोग्य, विद्या, धन और स्वर्ग मार्गकी प्राप्ति करानेवाले हैं। मुझे धर्म दीजिये, धन दीजिये और कामभोगादि प्रदान कीजिये। मुझे गुण, कीर्ति और सुखसे सम्पन्न कीजिये तथा स्वर्ग और मोक्ष प्रदान कीजिये।' इस शिवरात्रि व्रतके प्रभावसे पापात्मा सुन्दरसेन व्याधने भी पुण्य प्राप्त किया ॥ १-६॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'शिवरात्रि व्रतका वर्णन' नामक एक सौ तिरानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १९३॥

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