अग्नि पुराण - एक सौ सतासीवाँ अध्याय ! Agni Purana - 187 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ सतासीवाँ अध्याय ! Agni Purana 187 Chapter !

एक सौ सतासीवाँ अध्याय एकादशी व्रतं

अग्निरुवाच

एकादशीव्रतं वक्ष्ये भुक्तिमुक्तिप्रदायाकं ।
दशम्यान्नियताहारो मांसमैथुनवर्जितः ॥१

एकदश्यां न भुञ्जीत पक्षयोरुभयोरपि ।
द्वादश्येकादशी यत्र तत्र सन्निहितो हरिः ॥२

तत्र क्रतुशतं पुण्यं त्रयोदश्यां तु पारणे ।
एकादशी कला यत्र परतो द्वादशो गता॥३

तत्र क्रतुशतं पुण्यन्त्रयोदश्यान्तु पारणे ।
दशम्येकादशीमिश्रा नोपोष्या नरकप्रदा ॥४

एकादश्यान्निराहारो भुक्त्वा चैवापरेऽहनि ।
भोक्ष्येऽहं पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत ॥५

एकादश्यां सिते पक्षे पुष्यर्क्षन्तु यदा भवेत् ।
सोपोष्पाक्षय्यफलदा प्रोक्ता सा पापनाशिनी ॥६

एकादशी द्वादशी या श्रवणेन च संयुता ।
विजया सा तिथिः प्रोक्ता भक्तानां विजयप्रदा ॥७

एषैव फाल्गुने मासि पुष्यर्क्षेण च संयुता ।
विजया प्रोच्यते सद्भिः कोटिकोटिगुणोत्तरा ॥८

एकादश्यां विष्णुपूजा कार्या सर्वोपकारिणी ।
धनवान् पुत्रवान् लोके विष्णुलोके महीयते ॥९

इत्याग्न्येये महा पुराणे एकादशी व्रतं नाम सप्ताशीत्यधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण एक सौ छियासीवाँ  अध्याय !-हिन्दी मे Agni Purana 187 Chapter !-In Hindi

एक सौ सतासीवाँ अध्याय एकादशी तिथि के व्रत

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ। अब मैं भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले एकादशी व्रतका वर्णन करूँगा। व्रत करनेवाला दशमीको मांस और मैथुनका परित्याग कर दे एवं भजन भी नियमित करे। दोनों पक्षोंकी एकादशीको भोजन न करे ॥ १ ॥ 

द्वादशी-विद्धा एकादशीमें स्वयं श्रीहरि स्थित होते हैं, इसलिये द्वादशी विद्धा एकादशीके व्रतका त्रयोदशीको पारण करनेसे मनुष्य सौ यज्ञोंका पुण्यफल प्राप्त करता है। जिस दिनके पूर्वभागमें एकादशी कलामात्र अवशिष्ट हो और शेषभागमें द्वादशी व्याप्त हो, उस दिन एकादशीका व्रत करके त्रयोदशीमें पारण करनेसे सौ यज्ञोंका पुण्य प्राप्त होता है। दशमी विद्धा एकादशीको कभी उपवास नहीं करना चाहिये; क्योंकि वह नरककी प्राप्ति करानेवाली है। एकादशीको निराहार रहकर, दूसरे दिन यह कहकर भोजन करे- 'पुण्डरीकाक्ष! मैं आपकी शरण ग्रहण करता हूँ। अच्युत! अब मैं भोजन करूँगा।' शुक्लपक्षकी एकादशीको जब पुष्यनक्षत्रका योग हो, उस दिन उपवास करना चाहिये। वह अक्षयफल प्रदान करनेवाली है और 'पापनाशिनी' कही जाती है। श्रवणनक्षत्रसे युक्त द्वादशीविद्धा एकादशी 'विजया' नामसे प्रसिद्ध है और भक्तोंको विजय देनेवाली है। फाल्गुन मासमें पुष्यनक्षत्रसे युक्त एकादशीको भी सत्पुरुषोंने 'विजया' कहा है। वह गुणोंमें कई करोड़गुना अधिक मानी जाती है। एकादशीको सबका उपकार करनेवाली विष्णुपूजा अवश्य करनी चाहिये। इससे मनुष्य इस लोकमें धन और पुत्रोंसे युक्त हो (मृत्युके पश्चात्) विष्णुलोकमें पूजित होता है॥ २-९॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'एकादशी के व्रतों का वर्णन' नामक एक सौ सतासीवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १८७॥

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