Visit to the famous temple of Jai Shri Ganesh

जय श्री गणेश के प्रसिद्ध मंदिर की यात्रा

सर्व सिद्धि दाता भगवान श्री गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं

इस पृथ्वी लोक के प्रधान देवता श्री गणेश जी नव खंड धरती के प्रत्येक स्थल पर पूर्ण जागृत देव हैं।

प्रत्येक सिद्धि सफलता उनकी प्रसन्नता से ही मिलती है। सतयुग से लेकर आज तक ब्रह्मा विष्णु महेश इन्द्रादिक देवी देवता सह अनेक ऋषि मुनियो ओर भक्तों ने उनकी उपासना पूजन किये।

ऐसे अनेक स्थान हैं जो समय, बदलाव, और नवसृजन की प्रक्रिया में गोपनीय बन गए या अलग भाषा के अलग नाम से प्रसिद्ध होने के कारण हमें ज्ञात नही हैं। फिर भी जहां नित्य पूजा अर्चना हो रहा है वो स्थान आज भी तीर्थ स्वरूप है।

पंचदेवों में से एक भगवान गणेश सर्वदा ही अग्र पूजा के अधिकारी हैं और उनके पूजन से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है। श्रीगणेश के स्वतंत्र मंदिर कम ही जगहों पर देखने को मिलते हैं, परंतु सभी मंदिरों, घरों, दुकानों आदि में भगवान गणेश विराजमान रहते हैं।

इन जगहों पर भगवान गणेश की प्रतिमा, चित्रपट या अन्य कोई प्रतीक अवश् रखा मिलेगा। लेकिन कई स्थानों पर भगवान गणेश के स्वतंत्र मंदिर भी स्थापित हैं और उसकी महता भी अधिक बतायी जाती है। भारत ही नहीं भारत के बाहर भी भगवान गणेश पूजे जाते हैं। वहां किसी ना किसी रूप में भगवान गणेश की उपासना प्रचलित है।

मोरेश्‍वर -

गणपति तीर्थों में यह सर्वप्रधान है। यहां मयूरेश गणेश भगवान की मूर्ति सथापित है। यह क्षेत्र पुणे से ४० मील और जेजूरी स्टेशन से १० मील की दूरी पर अवस्थित है।

 

प्रयाग -

यह प्रसिद्ध तीर्थ उत्तर प्रदेश में है। यह 'ओंकार गणपति क्षेत्र' है। यहां आदिकल्प के आरंभ में ओंकार ने वेदों सहित मूर्तिमान होकर भगवान गणेश की आराधना और स्थापना की थी।

काशी -

यहां ढुण्ढिराज गणेश जी का मंदिर है। यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है और यह 'ढुण्ढिराज क्षेत्र' है। यह उत्तर प्रदेश के वाराणसी में है।

कलम्ब -

यह 'चिंतामणि क्षेत्र' है। महर्षि गौतम के श्राप से छूटने के लिए देवराज इंद्र ने यहां 'चिंतामणि गणेश' की स्थापना कर पूजा की थी। इस स्थान का नाम कदंबपुर है। बरार के यवतमाल नगर से यहां मोटर बस आदि से जाया जा सकता है।

अदोष -

नागपुर-छिदवाड़ा रेलवे लाइन पर सामनेर स्टेशन है। वहां से लगभग मील की दूरी पर यह स्थल है। इसे 'शमी विघ्नेश क्षेत्र कहा जाता है। महापाप, संकट और शत्रु नामक दैत्यों के संहार के लिए देवता तथा ऋषियों ने यहां तपस्या की थी। उनके द्वारा ही भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की गयी है। कहा जाता है कि  महाराज बलि के यज्ञ में जाने से पूर्व वामन भगवान ने भी यहां पूजा की थी।

पाली -

इस स्थान का प्राचीन नाम पल्लीपुर है, बल्लाल नामक वैश् बालक की भक्ति से यहां गणेशजी का आविर्भाव हुआ, इसलिए इसे 'बल्लाल विनायक क्षेत्र' कहा जाता है। यह मूल क्षेत्र सिंधु में वर्णित है, लेकिन वर्त्तमान में महाराष्ट्र कुलाबा जिले के पाली में इस क्षेत्र को माना जाता है।

पारिनेर -

यह 'मंगलमूर्ति क्षेत्र' है। मंगल ग्रह ने यहां तपस्या करके गणेशजी की आराधना की थी। ग्रंथों में यह क्षेत्र नर्मदा के किनारे बताया गया है।

गंगा मसले -

यह 'भालचंद्र गणेश क्षेत्र' है। चंद्रमा ने यहां भगवान गणेशजी की आराधना की थी। काचीगुडामनमाड रेलवे लाइन पर परभनी से छब्बीस मील दूर सैलू स्टेशन है। वहां से पंद्रह मील की दूरी पर गोदावरी के मध् में श्रीभालचंद्र गणेश का मंदिर है।

राक्षसभुवन -

जालना से ३३ मील की दूरी पर गोदावरी के किनारे यह स्थान है। यह 'विज्ञान गणेश क्षेत्र' है। गुरु दत्तात्रेय ने यहां तपस्या की और विज्ञान गणेश की स्थापना की। यहां मंदिर भी विज्ञान गणेश का है।

थेऊर -

पुणे से मील की दूरी पर यह स्थान है। ब्रह्माजी ने सृष्टि कार्य में आने वाले विघ्नों के नाश के लिए गणेशजी की यहां स्थापना की थी।

सिद्धटेक -

बंबई-रायचूर लाइन पर घौंड जंक्शन से मील की दूरी पर बोरीवली स्टेशन है। वहां से लगभग मील की दूरी पर भीमा नदी के किनारे यह स्थान है। इसका प्राचीन नाम 'सिद्धाश्रम' है। यहां भगवान विष्णु ने मधु कैटभ दैत्यों को मारने के लिए गणेशजी का पूजन किया था। यहां भगवान विष्णु द्वारा स्थापित गणेशजी की प्रतिमा है।

राजनगांव -

इसे 'मणिपुर क्षेत्र' कहते हैं। भगवान शंकर त्रिपुरासुर के साथ युद्ध करने से पहले यहां गणेशजी की पूजा की थी। यहां गणेश स्तवन करने के बाद उन्होंने त्रिपुरासुर को हराया था। शिवजी द्वारा स्थापित गणेशजी की मूर्ति यहां है। पुणे से राजनगांव के लिए सड़क मार्ग है।

 

विजयपुर -

अनलासुर के नाशार्थ यहां गणेशजी का अविर्भाव हुआ था। ग्रंथों में यह क्षेत्र तैलंगदेश में बताया गया है। स्थान का पता नहीं है। मद्रास-मैंगलोर लाइन पर ईरोड से १६ मील की दूरी पर विजयमंगलम स्टेशन है। वहां का गणपति मंदिर प्रख्यात है।

कश्‍यपाश्रम -

यहां पर महर्षि कश्यपजी ने अपने आश्रम में गणेशजी की प्रतिमा स्थापित कर उनकी पूजा की थी।

जलेशपुर -

मय दानव द्वारा निर्मित त्रिपुर के असुरों ने इस स्थान पर गणेशजी की स्थापना कर पूजन किया था।

 

लोह्याद्रि -

पुणे जिले में जूअर तालुका है। वहां से लगभग मील की दूरी पर यह स्थान है। पार्वतीजी ने यहां गणेशजी को पुत्र के रूप में पाने के लिए तपस्या की थी।

बेरोल -

इसका प्राचीन नाम एलापुर क्षेत्र है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद से बेरोल के लिए सड़क मार्ग है। घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भी यहीं है। तारकासुर के वध के बाद भगवान शंकर ने यहां गणेशजी की स्थापना कर उनकी पूजा की थी। यहां स्कंदमाता ने मूर्ति स्थापित की थी और उसका नाम 'लक्ष विनायक' है।

पद्मालय -

यह प्राचीन प्रवाल क्षेत्र है। बंबई-भुसावल रेलवे लाइन पर पचोरा जंक्शन से १६ मील की दूरी पर महसावद स्टेशन है। वहां से लगभग मील की दूरी पर यह तीर्थ है। यहां सहस्त्रार्जुन और शेषजी ने गणेशजी की पूजा की थी। दोनों की ओर से स्थापित दो गणपति मूर्तियां यहां हैं।

नामलगांव -

काचीगुड़ा-मनमाड लाइन पर जालना स्टेशन है। जालना से सड़क मार्ग से घोसापुरी गांव जाया जा सकता है। गांव से पैदल नामलगांव जाना पड़ता है। यह प्राचीन 'अमलाश्रम क्षेत्र' है। यम धर्मराज ने अपनी माता की शाप से मुक्ति के लिए यहां गणेशजी की स्थापना कर पूजा की थी। यहां की प्रतिमा भी यमराज ने ही स्थापित की है। यहां 'सुबुद्धिप्रद तीर्थ' भी है।

राजूर -

जालना स्टेशन से यह स्थान १४ मील दूर है। इसे 'राजसदन क्षेत्र' भी कहते हैं। सिंदूरासुर का वध करने के बाद गणेशजी ने यहां राजा वरेण् को 'गणेश गीता' का ज्ञान दिया था।

कुम्‍भकोणम् -

यह दक्षिण भारत का प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे 'श्वेत विघ्नेश्वर क्षेत्र' भी कहते हैं। यहां कावेरी पर सुधा-गणेशजी की मूर्ति है। समुद्र मंथन के समय पर्याप्त श्रम के बाद भी अमृत नहीं निकला तब देवताओं ने यहां गणेशजी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की थी।

और ऐसे भी अनेक स्थान है जहाँ तंत्र मार्ग से पूजा की जाती है और उनकी उपासना भी गोपनीय रखी जाती है। ये स्थान ज्यादातर गाढ़ जंगलों और पहाडियो के बीच हैं। गोपनीयता के कारण उस स्थान का वर्णन यहां नही किया जा रहा। सभी भक्तों के ऊपर भगवान गणपति जी की सदैव कृपा रहे यही प्रार्थना है।

सिद्धि विनायक नमो नमः

  जय श्री गणेश पूजा की विधि
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चार युगों में श्री गणेश के चार अवतार 
गणेश जी के मंत्र हिंदी में निम्नलिखित हैं

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