अग्नि पुराण - एक सौ सातवाँ अध्याय ! Agni Purana - 107 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ सातवाँ अध्याय ! Agni Purana - 107 Chapter !

अग्नि पुराण एक सौ सातवाँ अध्याय भुवनकोष (पृथ्वी-द्वीप आदि) का तथा स्वायम्भुव सर्गका वर्णन !स्वायम्भुवसर्गः

अग्नि पुराण - एक सौ सातवाँ अध्याय ! Agni Purana - 107 Chapter !

अग्नि पुराण - एक सौ सातवाँ अध्याय ! Agni Purana - 107 Chapter !

अग्निरुवाच
वक्ष्ये भुवनकोषञ्च पृथ्वीद्वीपादिलक्षणं ।
अग्निध्रश्चाग्निबाहुश्च वपुष्मान्द्युतिमांस्तथा ॥१०७.००१

मेधा मेधातिथिर्भव्यः सवनः पुत्र एव च ।
ज्योतिष्मान् दशमस्तेषां सत्यनामा सुतोऽभवत् ॥१०७.००२

प्रियव्रतसुताः ख्याताः सप्तद्वीपान्ददौ पिता ।
जम्बुद्वीपमथाग्नीध्रे प्लक्षं मेधातिथेर्ददौ ॥१०७.००३

वपुष्मते शाल्मलञ्च ज्योतिष्मते कुशाह्वयं ।
क्रौञ्चद्वीपं द्युतिमते शाकं भव्याय दत्तवान् ॥१०७.००४

पुष्करं सवनायादादग्नीध्रेऽदात्सुते शतं।
जम्बूद्वीपं पिता लक्षं नाभेर्दत्तं हिमाह्वयं ॥१०७.००५

हेमकूटं किम्पुरुषे हरिवर्षाय नैषधं ।
इलावृते मेरुमध्ये रम्ये नीलाचलश्रितं ॥१०७.००६

हिरण्वते श्वेतवर्षं कुरूंस्तु कुरवे ददौ ।
भद्राश्वाय च भद्राश्वं केतुमालाय पश्चिमं ॥१०७.००७

मेरोः प्रियव्रतः पुत्रानभिषिच्य ययौ वनं ।
शालग्रामे तपस्तप्त्वा ययौ विष्णोर्लयं नृपः ॥१०७.००८

यानि कुम्पुरुषाद्यानि ह्यष्टवर्षाणि सत्तम ।
तेषां स्वाभाविकी सिद्धिः सुखप्राया ह्ययत्नतः ॥१०७.००९

जरामृत्युभयं नास्ति धर्माधर्मौ युगादिकं ।
नाधमं मध्यमन्तुल्या हिमाद्देशात्तु नाभितः ॥१०७.०१०

ऋषभो मेरुदेव्याञ्च ऋषभाद्भरतोऽभवत् ।
ऋषभो दत्तश्रीः पुत्रे शालग्रामे हरिङ्गतः ॥१०७.०११

भरताद्भारतं वर्षं भरतात्सुमतिस्त्वभूत् ।
भरतो दत्तलक्ष्मीकः शालग्रामे हरिं गतः ॥१०७.०१२

स योगी योगप्रस्तावे वक्ष्ये तच्चरितं पुनः ।
सुमतेस्तेजसस्तस्मादिन्द्रद्युम्नो व्यजायत ॥१०७.०१३

परमेष्ठी ततस्तस्मात्प्रतीहारस्तदन्वयः ।
प्रतीहारात्प्रतीहर्ता प्रतिहर्तुर्भुवस्ततः ॥१०७.०१४

उद्गीतोथ च प्रस्तारो विभुः प्रस्तारतः सुतः ।
पृथुश्चैव ततो नक्तो नक्तस्यापि गयः सुतः ॥१०७.०१५

नरो गयस्य तनयः तत्पुत्रोऽभूद्विराट्ततः ।
तस्य पुत्रो महावीर्यो धीमांस्तस्मादजायत ॥१०७.०१६

महान्तस्तत्सुतश्चाभून्मनस्यस्तस्य चात्मजः ।
त्वष्टा त्वष्टुश्च विरजा रजस्तस्याप्यभूत्सुतः ॥१०७.०१७

सत्यजिद्रजसस्तस्य जज्ञे पुत्रशतं मुने ।
विश्वज्योतिःप्रधानास्ते भारतन्तैर्विवर्धितं ॥१०७.०१८

कृतत्रेतादिसर्गेण सर्गः स्वायम्भुवः स्मृतः ।१०७.०१९
इत्याग्नेये महापुराणे स्वायम्भुवः सर्गो नाम सप्ताधिकशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - एक सौ सातवाँ अध्याय !-हिन्दी मे -Agni Purana - 107 Chapter!-In Hindi

अग्निदेव कहते हैं - वसिष्ठ ! अब मैं भुवनकोष | तथा पृथ्वी एवं द्वीप आदिके लक्षणोंका वर्णन करूँगा। आग्नीध्र, अग्निबाहु, वपुष्मान्, द्युतिमान्, मेधा, मेधातिथि, भव्य, सवन और क्षय-ये प्रियव्रतके पुत्र थे। उनका दसवाँ यथार्थनामा पुत्र ज्योतिष्मान् था। प्रियव्रतके ये पुत्र विश्वमें विख्यात थे। पिताने उनको सात द्वीप प्रदान किये। आग्नीध्रको जम्बूद्वीप एवं मेधातिथिको प्लक्षद्वीप दिया। वपुष्मान्को शाल्मलिद्वीप, ज्योतिष्मान्‌को कुशद्वीप, द्युतिमान्को क्रौञ्चद्वीप तथा भव्यको शाकद्वीपमें अभिषिक्त किया। सवनको पुष्करद्वीप प्रदान किया। (शेष तीनको कोई स्वतन्त्र द्वीप नहीं मिला।) आग्नीध्रने अपने पुत्रोंमें लाखों योजन विशाल जम्बूद्वीपको इस प्रकार विभाजित कर दिया। नाभिको हिमवर्ष (आधुनिक भारतवर्ष) प्रदान किया। किम्पुरुषको हेमकूटवर्ष, हरिवर्षको नैषधवर्ष, इलावृतको मध्यभागमें मेरुपर्वतसे युक्त इलावृतवर्ष, रम्यकको नीलाचलके आश्रित रम्यकवर्ष, हिरण्यवान्को श्वेतवर्ष एवं कुरुको उत्तरकुरुवर्ष दिया। उन्होंने भद्राश्वको भद्राश्ववर्ष तथा केतुमालको मेरुपर्वतके पश्चिममें स्थित केतुमालवर्षका शासन प्रदान किया। महाराज प्रियव्रत अपने पुत्रोंको उपर्युक्त द्वीपोंमें अभिषिक्त करके वनमें चले गये। वे नरेश शालग्रामक्षेत्रमें तपस्या करके विष्णुलोकको प्राप्त हुए ॥ १-८ ॥
मुनिश्रेष्ठ ! किम्पुरुषादि जो आठ वर्ष हैं, उनमें सुखकी बहुलता है और बिना यत्नके स्वभावसे ही समस्त भोग-सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। उनमें जरा-मृत्यु आदिका कोई भय नहीं है और न धर्म-अधर्म अथवा उत्तम, मध्यम और अधम आदिका ही भेद है। वहाँ सब समान हैं। वहाँ कभी युग परिवर्तन भी नहीं होता। हिमवर्षके शासक नाभिके मेरु देवीसे ऋषभदेव पुत्ररूपमें उत्पन्न हुए। ऋषभके पुत्र भरत हुए। ऋषभदेवने भरतपर राज्यलक्ष्मीका भार छोड़कर शालग्रामक्षेत्रमें श्रीहरिकी शरण ग्रहण की। भरतके नामसे 'भारतवर्ष' प्रसिद्ध है। भरतसे सुमति हुए। भरतने सुमतिको राज्यलक्ष्मी देकर शालग्रामक्षेत्रमें श्रीहरिकी शरण ली। उन योगिराजने योगाभ्यासमें तत्पर होकर प्राणोंका परित्याग किया। इनका वह चरित्र तुमसे मैं फिर कहूँगा ॥ ९-१२३॥ तदनन्तर सुमतिके वीर्यसे इन्द्रद्युम्नका जन्म हुआ। उससे परमेष्ठी और परमेष्ठीका पुत्र प्रतीहार हुआ। प्रतीहारके प्रतिहर्ता, प्रतिहर्ताक भव, भवके उद्‌गीथ, उद्‌गीथके प्रस्तार तथा प्रस्तारके विभु नामक पुत्र हुआ। विभुका पृथु, पृथुका नक्त एवं नक्तका पुत्र गय हुआ। गयके नर नामक पुत्र और नरके विराट् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। विराट्का पुत्र महावीर्य था। उससे धीमान्का जन्म हुआ तथा धीमान्का पुत्र महान्त और उसका पुत्र मनस्यु हुआ। मनस्युका पुत्र त्वष्टा, त्वष्टाका विरज और विरजका पुत्र रज हुआ। मुने ! रजके पुत्र शतजित्के सौ पुत्र उत्पन्न हुए, उनमें विश्वज्योति मुख्य था। उनसे भारतवर्षकी अभिवृद्धि हुई। कृत-त्रेतादि युगक्रमसे यह स्वायम्भुव मनुका वंश माना गया है ॥ १३-१९ ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'भुवनकोष तथा पृथ्वी एवं द्वीप आदिके लक्षणका वर्णन नामक एक सौ सातवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १०७ ॥

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