अग्नि पुराण तीन सौ बावनवाँ अध्याय - Agni Purana 352 Chapter
अग्नि पुराण तीन सौ बावनवाँ अध्याय - स्त्रीलिङ्गशब्द सिद्ध रूपम्
स्कन्द उवाच
रमा रमे रमाः शुभा रमां रमे रमास्तथा ।
रमया च रमाभ्याञ्च रमाभिः सृतमव्ययं ।। १ ।।
रमायै च रमाभ्याञ्च रमाया रमयोः शुभं ।
रमाणाञ्च रमायाञ्च रमाश्वेवं कलादयः ।। २ ।।
जरा जरसौ जर इति जरसश्च जरा जरां ।
जरसञ्च जरास्वेवं सर्व्वा सर्व्वे च सर्व्वेया ।। ३ ।।
सर्व्वस्थै देहि सर्व्वस्याः सर्व्वस्याः सर्व्वयोस्तथा ।
शेषं रमावद्रूपं स्याद् द्वे द्वे तिस्रश्च तिसृणां ।। ४ ।।
बुद्धीर्बुद्ध्या बुद्धये च बुद्ध्यै बुद्धेश्च हेमते ।
कविवत्स्यान्मुनीनाञ्च नदी नद्यौ नदीं नदीः ।। ५ ।।
नद्या नदीभिर्नद्यै च नद्याञ्चैव नदीषु च ।
कुमारी जृम्भणीत्येवं श्रीः श्रियौ च श्रियः श्रिया ।। ६ ।।
श्रियै श्रिये स्त्रीं स्त्रियञ्च स्त्रीश्च स्त्रियः स्त्रिया स्त्रियै ।
स्त्रियाः स्त्रीणां स्त्रियाञ्च ग्रामण्यां धेन्वै च धेनवे ।। ७ ।।
जम्बूर्जम्ब्वौ च जम्बूश्च जम्बूनाञ्च फलम्पिव ।
वर्षाभ्वौ च पुनर्भ्वौ च मातॄर्व्वापरि च गौश्च नौः ।। ८ ।।
वाग्वाचा वाग्भिश्च वाक्षु स्रग्भ्यां स्रजि स्रजोस्तथा ।
विद्वद्भ्याञ्चैव विद्वत्सु भवती स्याद् भवन्त्यपि ।। ९ ।।
दीव्यन्ती भाती भान्ती च तुदन्ती च तुदत्यपि ।
रुदती रुन्धती देवी गृह्णती चोरयन्त्यपि ।। १० ।।
दृषत् दृषद्भ्यां दृषदि विशेषविदुषी कृतिः ।
समित् समिद्ब्यां समिधि सीमा सीम्नि च सीमनि ।। ११ ।।
दामनीभ्यां ककुद्भ्याञ्च केयमाब्यां तथासु च ।
गीर्भ्याञ्चैव गिरा गीर्षु सुभूः सुपूः पुरा पुरि ।। १२ ।।
द्यौर्द्युभ्यां दिवि द्युषु तादृश्या तादृशी दिशः ।
यादृश्यां यादृशी तद्वत् सुवचोभ्यां सुवचः स्वपि ।।
असौ चामूममू चामूरमूभिरमुचाऽमुयोः ।। १३ ।।
इत्यादिमहापुराणे आग्नेये व्याकरणे स्त्रीलिङ्गशब्दसिद्धरूपं नाम द्विपञ्चाशदधिकत्रिशततमोऽध्यायः ॥
अग्नि पुराण - तीन सौ बावनवाँ अध्याय हिन्दी मे Agni Purana 352 Chapter In Hindi
तीन सौ बावनवाँ अध्याय स्त्रीलिङ्ग शब्दोंके सिद्ध रूप
भगवान् स्कन्द कहते हैं- आकारान्त स्त्रीलिङ्ग 'रमा' शब्दके रूप इस प्रकार होते हैं, रमा (प्र० ए०), रमे (प्र०-द्वि०), रमाः (प्र० ब०), 'रमाः शुभाः' (रमाएँ शुभस्वरूपा है)। रमाम् (द्वि० ए०), रमे रमाः (द्वि० ब०)। रमया (तृ० ए०), रमाभ्याम् रमाभिः 'रमाभिः कृतमव्ययम्।'- (रमाओंने अव्यय (अक्षय) पुण्य किया है)। रमायै , रमाभ्याम् (च०, पं० द्वि०), रमायाः (प०, ष० ए०), रमयोः (ष०, स०-द्वि०), 'रमयोः शुभम्' (दो रमाओंका शुभ)। रमाणाम् रमायाम् स०ए०), रमासु इसी प्रकार 'कला' आदि शब्दोंके रूप होते हैं। आकारान्त 'जरा' शब्दके कुछ रूप भिन्न होते हैं- जरा (प्रथमा विभक्ति एक०) में जरसौ जरे (प्र०, द्वि० द्वि०), जरसः जराः (प्र०, द्वि०- बहु०), जरसम्- जराम् (द्वि० ए०), जरासु (स०- ब०)। अब 'सर्वां' शब्दके रूप कहते हैं-१- सर्वा, सर्वे, सर्वाः। २- सर्वाम् सर्वे सर्वाः। सर्वया (तु० ए०), सर्वस्यै 'सर्वस्यै देहि' (सबको दो)।
सर्वस्याः सर्वस्याः (ष० ए०), सर्वयोः (१०, स०-द्वि०), शेष रूप 'रमा' शब्दके समान होते हैं। स्त्रीलिङ्ग नित्य द्विवचनान्त द्वि-शब्दके रूप ये हैं-द्वे (प्र०-द्वि०), द्वे (द्वि०-द्वि०), 'त्रि' शब्दके रूप ये हैं-१-२-तिस्त्रः। तिसृणाम् (६० ब०)। 'बुद्धि' शब्दके रूप इस प्रकार हैं-बुद्धिः (प्र० ए०), बुद्धया (तृ० ए०), बुद्धये-बुद्धवै बुद्धेः (प०, ५०- ए०)। 'मति' शब्दके सम्बोधनके एकवचनमें 'हे मते'- यह रूप होता है। 'मुनीनाम्' (यह 'मुनि' शब्दके षष्ठी-बहुवचनका रूप है) और शेष रूप 'कवि' शब्दके समान होते हैं। 'नदी' शब्दके रूप इस प्रकार होते हैं- नदी (प्र० ए०), नची (प्र० द्वि०-द्वि०), नदीम् (द्वि० ए०), नदीः (द्वि० ब०), नद्या नदीभिः नहीं नद्याम् (स० ए०), नदीषु (स० ब०), इसी प्रकार 'कुमारी' और 'जृम्भणी' शब्दके रूप होते हैं। 'श्री' शब्दके रूप भिन्न होते हैं- 'श्रीः' (प्र०- ए०), श्रियी (प्र०-द्वि०-द्वि०), श्रियः (प्र०, द्वि०-३०), श्रिया (तृ० ए०), श्रियै- श्रिये (च० ए०)। 'स्त्री' शब्दके रूप अधोलिखित हैं-स्त्रीम्-स्वियम् (द्वि० ए०), स्त्रीः स्त्रियः (द्वि०-च०), स्त्रिया (तृ० ए०), स्वियै (च० ए०), स्त्रियाः (प०, प० ए०), स्त्रीणाम् (ष० ब०), स्त्रियाम् (स० ए०)। स्त्रीलिङ्ग 'ग्रामणी' शब्दका सप्तमीके एकवचनमें 'ग्रामण्याम्' और 'धेनु' शब्दका चतुर्थीके एकवचनमें 'धेन्वै, धेनवे' रूप होते हैं ॥ १-७॥ ' जम्बु' शब्दके रूप ये हैं- जम्बूः (प्र० ए०) जम्ब्बी (प्र०-द्वि०-द्वि०), जम्बूः (द्वि०- ब०), जम्बूनाम् (प० ब०)। 'जम्बूनां फलं पिब।' (जामुनके फलोंका रस पीयो)। 'वर्षाभू' आदि शब्दके कतिपय रूप ये हैं वर्षाभ्वी (प्र०, द्वि०- द्वि०)। पुनर्थी (प्र०, द्वि०-द्वि०)। मातृः (मातृशब्दका द्वि० ब०)। गौः (गो प्र०- ए०)। नौः (नौका) (प्र०ए०)। 'वाच्' शब्दके रूप ये हैं- वाक्- वाम् (प्र० ए०) (वाणी), वाचा वाग्भिः (तृ०-३०)।
वालु (स० ब०)। पुष्पहारवाचक 'खज्' शब्दके रूप ये हैं खग्भ्याम् (तू०, च० एवं पं०- द्वि०)। स्वजि स्रजोः (१० स०- द्वि०)। लतावाचक 'वीरुध्' शब्दके रूप ये हैं- वीरुद्भ्याम् (तृ०, च० एवं पं० द्वि) वीरुत्सु स० ब०)। स्त्रीलिङ्गमें प्रथमाके एकवचनमें उकारानुबन्ध 'भवत्' शब्दका 'भवती' और ऋकारानुबन्ध 'भवत्' शब्दका 'भवन्ती' रूप होता है। स्त्रीलिङ्ग 'दीव्यत्' शब्दका प्रथमाके एकवचनमें 'दीव्यन्ती' रूप होता है। स्त्रीलिङ्गमें 'भात्' शब्दके भी प्रथमाके एकवचनमें भाती- भान्ती ये दो रूप होते हैं। स्वीलिङ्ग 'तुदत्' शब्दके भी प्रथमाके एकवचनमें तुदती- तुदन्ती- ये दो रूप होते हैं। स्त्रीलिङ्गमें प्रथमाके एकवचनमें 'रुदत्' शब्दका रुदती, 'रुन्चत्' शब्दका रुन्धती, 'गृह्नत्' शब्दका गृह्नती और 'चोरयत्' शब्दका चोरयन्ती रूप होता है। 'दृषद्' शब्दके रूप ये हैं दृषद् (प्र० ए०), दृषद्भ्याम् (तृ०च० एवं पं० द्वि०), दृषदि (स- ए०)। विशेषविदुषी (प्र० ए०)। प्रथमाके एकवचनमें 'कृति' शब्दका 'कृतिः' रूप होता है।
समिध्' शब्दके रूप ये हैं- समित्-समिद् प्र० ए०), समिद्भ्याम् (तृ०, च० एवं पं०- द्वि०), समिधि (स० ए०)। 'सीमन्' शब्दके रूप इस प्रकार हैं-सीमा (प्र० ए०), सीम्नि सीमनि (स० ए०)। तृ०, च० एवं पं० के द्विवचनमें 'दामनी' शब्दका दामनीभ्याम्, 'ककुभ्' शब्दका ककुब्भ्याम् रूप होता है। 'का' 'किम्' शब्द प्र० ए० इयम् (इदम् शब्द प्र० ए०), आभ्याम् (तृ०, च० एवं पं० द्वि०), 'इदम्' शब्दके सप्तमीके बहुवचनमें 'आसु' रूप होता है।, 'गिर्' शब्दके रूप ये हैं गीर्य्याम् (तृ०, च० एवं पं० द्वि०) गिरा (तृ०- ए०), गीर्ष (स० ब०)। प्रथमाके एकवचनमें 'सुभूः' और 'सुपूः' रूप सिद्ध होते हैं। 'पुर' शब्दका तृतीयाके एकवचनमें 'पुरा' और सप्तमीके एकवचनमें 'पुरि' रूप होता है। 'दिव्' शब्दके रूप ये हैं द्यौः (प्र० ए०), द्युभ्याम् (तृ०, च० एवं पं० द्वि०), दिवि (स०ए०), ग्रुषु तादृश्या (तृ० ए०), तादृशी 'तादृशी' शब्दके रूप हैं। 'दिश्' शब्दके रूप दिक्-दिग् दिशौ दिशः इत्यादि हैं। यादृश्याम् (स०ए०), यादृशी प्र० ए०) ये 'यादृशी' शब्दके रूप हैं। सुवचोभ्याम् (तृ०, च० एवं पं० द्वि) सुवचस्सु 'सुवचस्' शब्दके रूप हैं। स्त्रीलिङ्गमें 'अदस्' शब्दके कतिपय रूप ये हैं- असौ (५० ए०), अमू (प्र० द्वि०-द्वि०), अमूम् (द्वि० ए०), अमूः (प्र०, द्वि० ब०), अमूभिः अमुया (तृ० ए०), अमुयोः (ष०, स० द्वि०) ॥ ८-१३॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'स्त्रीलिङ्ग शब्दों के सिद्ध रूपों का कथन' नामक तीन सौ बावनवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ३५२॥
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