गजानन स्तोत्र - देवर्षय ऊचुः । नमस्ते गजवक्त्राय गजाननसुरूपिणे - Gajanan Stotra - Devarshay Uchuh Namaste Gajavaktray Gajanana Surupine

गजानन स्तोत्र - देवर्षय ऊचुः । नमस्ते गजवक्त्राय गजाननसुरूपिणे

श्री गजानन स्तोत्र का पाठ करते समय शुद्ध उच्चारण करना चाहिए. अगर आप अपनी किसी खास मनोकामना की पूर्ति चाहते हैं, तो इसे 11 या 21 बुधवार तक या 11 या 21 दिनों तक करने का संकल्प लें. पहले दिन ही भगवान गणेश के समक्ष अपनी मनोकामना को कह दें और उनसे इसे पूरा करने की विनती करें. ध्यान रहे कि जो प्रण आपने लिया है, उसे पूरा जरूर करें 
श्री गजानन स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जातक की हर मनोकामना पूर्ण होती है। इससे मनुष्य को शांति मिलती है और जीवन से सभी प्रकार की बुराइयां दूर होती है। इस स्तोत्र के पाठ से स्वास्थ्य लाभ के साथ धन की वृद्धि होती है।

श्री गजानन स्तोत्र का पाठ करने का तरीका:-

  • स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें !
  • भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठें !
  • धूप-दीप जलाकर गणेश भगवान को निमंत्रण दें !
  • गणेश जी को जल से स्नान कराएं और वस्त्र अर्पित करें !
  • गणेश जी को जल, फल और मिष्ठान का भोग लगाएं !
  • संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करें !
  • पाठ के खत्म होने के बाद गणेश जी की आरती करें !
Gajanan Stotra - Devarshay Uchuh Namaste Gajavaktray Gajanana Surupine

गजानन स्तोत्र Gajanan Stotra

देवर्षय ऊचुः

नमस्ते गजवक्त्राय गजाननसुरूपिणे । 
पराशरसुतायैव वत्सलासूनवे नमः ॥१॥

 व्यासभ्रात्रे शुकस्यैव पितृव्याय नमो नमः । 
अनादिगणनाथाय स्वानन्दावासिने नमः ॥२॥

रजसा सृष्टिकर्ते ते सत्त्वतः पालकाय वै। 
तमसा सर्वसंहत्रे गणेशाय नमो नमः ॥३॥

सुकृतेः पुरुषस्यापि रूपिणे परमात्मने । 
बोधाकाराय वै तुभ्यं केवलाय नमो नमः ॥४॥

स्वसंवेद्याय देवाय योगाय गणपाय च । 
शान्तिरूपाय तुभ्यं वै नमस्ते ब्रह्मनायक ॥५॥

विनायकाय वीराय गजदैत्यस्य शत्रवे । 
मुनिमानसनिष्ठाय मुनीनां पालकाय च ॥६॥

देवरक्षकरायैव विघ्नेशाय नमो नमः । 
वक्रतुण्डाय घोराय चैकदन्ताय ते नमः ॥७॥

त्वयाऽयं निहतो दैत्यो गजनामा महाबलः । 
ब्रह्माण्डे मृत्युसंहीनो महाश्चर्यं कृतं विभो ! ॥८॥

हते दैत्येऽधुना कृत्स्नं जगत्सन्तोषमेष्यति । 
स्वाहा स्वधायुतं पूर्ण स्वधर्मस्थं भविष्यति ॥९॥

एवमुक्त्वा गणाधीश सर्वे देवर्षयस्ततः । 
प्रणम्य तूष्णीभावं ते सम्प्राप्ता विगतज्वराः ॥१०॥

कर्णों सम्पीड्य गणप-चरणे शिरसो ध्वनिः । 
मधुरः प्रकृतस्तैस्तु तेन तुष्टो गजाननः ॥११॥

तानुवाच मदीया ये भक्ताः परमभाविताः । 
तैश्च नित्यं प्रकर्तव्यं भवद्भिर्नमनं यथा ॥१२॥

तेभ्योऽहं परमंप्रीतो दास्यामि मनसीप्सिताम् । 
एतादृशं प्रियं मे च नमनं नाऽत्र संशयः ॥१३॥

एवमुक्त्वा स तान् सर्वान् सिद्धि-बुद्धयादि-संयुतः ।
अन्तर्दधे ततो देवा मुनयः स्वस्थलं ययुः ॥१४॥ 

इति श्रीमदान्त्ये मौद्गले द्वितीयखण्डे गजासुरवधे गजाननस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

ये भी पढ़ें:-

श्री गणपति स्तव ]  [ गणेश कवच ] [ गणेशाष्टकम् ] [ सङ्कष्टनाशनं गणेश स्तोत्र ]  [ गणेश अष्टकं ] 

श्री गणेश अष्टकम ] [ संकट हरण अष्टकम गणेश स्तोत्र ] [ गजानन स्तोत्र शङ्करादिकृत ] 

देवर्षि कृतं - गजानन स्तोत्र ] [ गजानन स्तोत्र ] [ श्री विनायक विनति ] [ गणपति स्तोत्र ] 

गणेश मानस पूजा ] [ श्री गणेश बाह्य पूजा ] [ संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं ] [ श्रीगणेशमहिम्नः स्तोत्रम् ]

गणेश अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ] [ गणेश सहस्रनाम स्तोत्र ] [ एकदंत गणेश स्तोत्र ]

महा गणपति स्तोत्रम्‌ ] [ गणेश स्तवराज ] [ ढुंढिराजभुजंगप्रयात स्तोत्रम् ]

श्री गजानन स्तोत्र का पाठ करने से कई फ़ायदे होते हैं:-

  • जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करना
  • एकाग्रता और फ़ोकस में वृद्धि
  • आंतरिक शांति और शांति की प्राप्ति
  • समृद्धि और सफलता के लिए भगवान गणेश का आशीर्वाद
  • आस-पास से नकारात्मक ऊर्जा की सफ़ाई
  • संचार कौशल और बुद्धि में सुधार
  • मनोकामनाओं की पूर्ति
  • स्वास्थ्य लाभ
  • धन की वृद्धि

टिप्पणियाँ