संकट हरण अष्टकम गणेश स्तोत्र ! Sankat Haran Ashtakam Ganesh Stotra

संकट हरण अष्टकम गणेश स्तोत्र !

संकटहरण गणेश अष्टकम का पाठ करने से पहले भगवान गणेश जी को सिंदूर, घी का दीपक, अक्षत, पुष्प, दूर्वा और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए. फिर मन में उनका ध्यान करने के बाद इस पाठ को पढ़ना चाहिए ! अगर रोज़ाना नहीं कर सकते, तो सिर्फ़ बुधवार के दिन ही इसे 11 बार पढ़ना चाहिए !
मान्यता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं और बिगड़े काम बनने लगते हैं इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को शांति मिलती है और जीवन से सभी प्रकार की बुराइयां दूर होती हैं साथ ही, इससे स्वास्थ्य लाभ के साथ धन की वृद्धि होती है और भयमुक्ती भी मिलती है. इस स्तोत्र के नित्य पठन से छह महीने में इच्छित फल की प्राप्ति होती है !
Sankat Haran Ashtakam Ganesh Stotra

सङ्कष्टहरणं गणेशाष्टकम् ! Sankat Haran Ashtakam Ganesh Stotra

  • । श्रीगणेशाय नमः ।

ॐ अस्य श्रीसङ्कष्टहरणस्तोत्रमन्त्रस्य श्रीमहागणपतिर्देवता, संकष्टहरणार्थ जपे विनियोगः ।

ॐ ॐ ॐ काररूपं त्र्यहमिति च परं यत्स्वरूपं तुरीयं ॐ काररूपं हिमकररुचिरं, त्रैगुण्यातीतनीलं कलयति मनसस्तेज-सिन्दूर-मूर्तिम् ।

योगीन्द्रैर्ब्रह्मरन्ध्रैः सकल-गुणमयं श्रीहरेन्द्रेण सङ्गं, 
गं गं गं गं गणेशं गजमुखमभितो व्यापकं चिन्तयन्ति ॥ १॥

वं वं वं विघ्नराजं भजति निजभुजे दक्षिणे न्यस्तशुण्डं,
क्रं क्रं क्रं क्रोधमुद्रा-दलित-रिपुबलं कल्पवृक्षस्य मूले ।

दं दं दं दन्तमेकं दधति मुनिमुखं कामधेन्वा निषेव्यं, 
धं धं धं धारयन्तं धनदमतिघियं सिद्धि-बुद्धि-द्वितीयम् ॥ २॥

तुं तुं तुं तुङ्गरूपं गगनपथि गतं व्याप्नुवन्तं दिगन्तान्,
क्लीं क्लीं क्लीं कारनाथं गलितमदमिलल्लोल-मत्तालिमालम् ।

ह्रीं ह्रीं ह्रीं कारपिङ्गं सकलमुनिवर-ध्येयमुण्डं च शुण्डं, 
श्रीं श्रीं श्रीं श्रीं श्रयन्तं निखिल-निधिकुलं नौमि हेरम्बबिम्बम् ॥ ३॥

लौं लौं लौं कारमाद्यं प्रणवमिव पदं मन्त्रमुक्तावलीनां,
शुद्धं विघ्नेशबीजं शशिकरसदृशं योगिनां ध्यानगम्यम् ।

डं डं डं डामरूपं दलितभवभयं सूर्यकोटिप्रकाशं, 
यं यं यं यज्ञनाथं जपति मुनिवरो बाह्यमभ्यन्तरं च ॥ ४॥

हुं हुं हुं हेमवर्णं श्रुति-गणित-गुणं शूर्पकणं कृपालुं,
ध्येयं सूर्यस्य बिम्बं ह्युरसि च विलसत् सर्पयज्ञोपवीतम् ।

स्वाहा हुं फट् नमोऽन्तैष्ठ-ठठठ-सहितैः पल्लवैः सेव्यमानं, 
मन्त्राणां सप्तकोटि-प्रगुणित-महिमाधारमीशं प्रपद्ये ॥ ५॥

पूर्वं पीठं त्रिकोणं तदुपरि-रुचिरं षट्कपत्रं पवित्रं,
यस्योर्ध्वं शुद्धरेखा वसुदल कमलं वा स्वतेजश्चतुस्रम् ।

मध्ये हुङ्कार बीजं तदनु भगवतः स्वाङ्गषट्कं षडस्रे, 
अष्टौ शक्तीश्च सिद्धीर्बहुलगणपतिर्विष्टरश्चाऽष्टकं च ॥ ६॥

धर्माद्यष्टौ प्रसिद्धा दशदिशि विदिता वा ध्वजाल्यः कपालं,
तस्य क्षेत्रादिनाथं मुनिकुलमखिलं मन्त्रमुद्रामहेशम् ।

एवं यो भक्तियुक्तो जपति गणपतिं पुष्प-धूपा-ऽक्षताद्यै-, 
र्नैवेद्यैर्मोदकानां स्तुतियुत-विलसद्-गीतवादित्र-नादैः ॥ ७॥

राजानस्तस्य भृत्या इव युवतिकुलं दासवत् सर्वदास्ते,
लक्ष्मीः सर्वाङ्गयुक्ता श्रयति च सदनं किङ्कराः सर्वलोकाः ।

पुत्राः पुत्र्यः पवित्रा रणभुवि विजयी द्यूतवादेऽपि वीरो, 
यस्येषो विघ्नराजो निवसति हृदये भक्तिभाग्यस्य रुद्रः ॥ ८॥

॥ इति सङ्कष्टहरणं गणेशाष्टकं अथवा वक्रतुण्डस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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मान्यता है कि संकटनाशन गणेश स्तोत्र का नियमित पाठ करने से कई फ़ायदे होते हैं:-

  • जातक को शांति मिलती है
  • जीवन से सभी तरह की बुराइयां दूर होती हैं
  • स्वास्थ्य लाभ होता है
  • धन की वृद्धि होती है
  • व्यक्ति भयमुक्त होता है
  • छह महीने में इच्छित फल की प्राप्ति होती है
  • विद्यार्थियों को विद्या मिलती है
  • धन की कामना रखने वालों को धन मिलता है
  • पुत्र की कामना रखने वालों को पुत्र की प्राप्ति होती है
  • एक साल तक नियमित पाठ करने से सिद्धि मिलती है
  • व्यक्ति के बिगड़े काम बन जाते हैं
  • सभी संकटों का नाश होता है

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