गणेश अष्टकं व्यासविरचितं !
श्री गणेशाष्टकम् का पाठ करने से मनोवांछित फल मिलता है और जीवन में आने वाले दुख, संकट, और क्लेश दूर हो जाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से साधक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. साथ ही, आय, आयु, और सौभाग्य में वृद्धि होती है. गणेश जी को समृद्धि और धन का देवता कहा जाता है. माना जाता है कि भगवान गणेश सौभाग्य लाते हैं और इसलिए कुछ भी नया शुरू करने से पहले उनकी पूजा की जाती है !
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Ganesh Ashtakam Vyasavirchitam ! |
गणेश अष्टकं व्यासविरचितं ! Ganesh Ashtakam Vyasavirchitam !
गणपति-परिवारं चारुकेयूरहारं
गिरिधरवरसारं योगिनीचक्रवारम् ।
भव-भय-परिहारं दुःख-दारिद्रयदूरं
गणपतिमभिवन्दे वक्रतुण्डावतारम् ॥१॥
अखिलमलविनाशं पाणिना हस्तपाशं
कनकगिरिनिकाशं सूर्यकोटिप्रकाशम् ।
भज भवगिरिनाशं मालतीतीरवासं
गणपतिमभिवन्दे मानसे राजहंसम् ॥२॥
विविध-मणि-मयूखैः शोभमानं विदूरैः
कनक-रचित-चित्रं कण्ठदेशे विचित्रम् ।
दधति विमलहारं सर्वदा यत्नसारं
गणपतिमभिवन्दे वक्रतुण्डावतारम् ॥३॥
दुरितगजममन्दं वारणीं चैव वेदं
विदितमखिलनादं नृत्यमानन्दकन्दम् ।
दघति शशिसुवक्त्रं चाऽङ्कुशं यो विशेषं
गणपतिमभिवन्दे सर्वदाऽऽनन्दकन्दम् ॥४॥
त्रिनयनयुतभाले शोभमाने विशाले
मुकुट-मणि-सुढाले मौक्तिकानां च जाले ।
धवलकुसुममाले यस्य शीर्णः सताले
गणपतिमभिवन्दे सर्वदा चक्रपाणिम् ॥५॥
वपुषि महति रूपं पीठमादौ सुदीपं
तदुपरि रसकोणं यस्य चोर्ध्वं त्रिकोणम् ।
गजमितदलपद्मं संस्थितं चारुछद्मं
गणपतिमभिबन्दे कल्पवृक्षस्य वृन्दे ॥६॥
वरदविशदशस्तं दक्षिणं यस्य हस्तं
सदयमभयदं तं चिन्तये चित्तसंस्थम् ।
शबलकुटिलशुण्डं चैकतुण्डं द्वितुण्डं
गजपतिमभिवन्दे सर्वदा वक्रतुण्डम् ॥७॥
कल्पद्रुमाधः स्थिते कामधेनुं
चिन्तामणिं दक्षिण-पाणि-शुण्डम् ।
बिभ्राणमत्यद्भुतचित्तरूपं यः
पूजयेत् तस्य समस्तसिद्धिः ॥८॥
व्यासाऽष्टकमिदं पुण्यं गणेशस्तवनं नृणाम् ।
पठतां दुःखनाशाय विद्यां संश्रियमश्नुते ॥९॥
इति श्रीपद्मपुराणे उत्तरखण्डे व्यासविरचितं गणेशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥४॥
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गणेश अष्टकं व्यासविरचितम् हिन्दी अर्थ ! Ganesh Ashtakam Vyasavirchitam Hindi Arth
गणेशजी सभी गणपतियों के परिवार में विराजमान रहने वाले हैं, वे सुन्दर केयूर तथा हार से सुशोभित हैं और श्रीकृष्ण के श्रेष्ठ अंश स्वरुप वे योगिनी चक्र में विचरण करने वाले हैं, सांसारिक भय समाप्त करने वाले हैं, दुःख तथा दरिद्रता का नाश करने वाले हैं ; मैं वक्रतुण्डावतार धारण करने वाले श्रीगणेश जी की वन्दना करता हूँ। अपने हाथ की वर मुद्रा के द्वारा प्राणियों के समग्र दोषों को दूर करने वाले, हाथ में पाश धारण करने वाले, सुमेरु पर्वत के समान कान्ति वाले, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले, संसार रूपी पर्वत का नाश करने वाले, मालती नदी के तट पर निवास करने वाले गणेश को भजिये। [ योगियों के मन रूपी ] मानसरोवर में राजहंस के समान विचरण करने वाले [ उन्हीं भजनीय ] श्रीगणपति जी की मैं वन्दना करता हूँ।
जो वैदूर्यादि विविध मणियों की किरणों से सुशोभित हैं, सुवर्ण जटित चित्रमय विचित्र धवलहार को कण्ठ देश में जो सर्वदा धारण करते हैं, जो सभी सत्प्रयत्नों के सारस्वरूप हैं, उन वक्रतुण्ड का अवतार धारण करने वाले श्रीगणेश जी कि मैं वन्दना करता हूँ। प्राणियों को दुःख देने वाले पाप रूपी प्रचण्ड हाथी को रोकने में समर्थ, ज्ञानमूर्ति, समस्त नादसमूह का ज्ञान रखने वाले, सदा नृत्य करने वाले, सबको आनन्द प्रदान करने वाले, हाथ में अंकुश धारण करने वाले, चन्द्रमा के समान सुन्दर मुखवाले, सदैव आनन्द रूपवाले उपर्युक्त विशेषणों से विशिष्ट गणपतिजी की मैं वन्दना करता हूँ।
सुन्दर तथा विशाल तीन नेत्रों से युक्त भाल वाले, मुकुट पर बहुमूल्य मणि धारण करने वाले, मुक्ताओं से सुशोभित हार धारण करने वाले, कानों को सदा डुलाने वाले, हाथ में चक्र धारण करने वाले गणपतिजी की मैं सदा वन्दना करता हूँ। श्रीगणपति-यन्त्र के मध्य में त्रिकोणाकार जो दीपक है, उसके मध्य में गणेशजी की पीठ है, उसके ऊपर छः कोण बने हुए हैं जिसका उर्ध्व भाग त्रिकोण है ; इस यन्त्र में पद्म के आठ दल हैं। इस कल्पवृक्ष के वन में अव्यक्त रूप से सुशोभित रहने वाले गणपतिजी की मैं वन्दना करता हूँ।
निरन्तर वरदान देने के निमित्त जिनका विशाल हाथ सदा दक्षिण दिशा में रहता है, जो दयावान् हैं, अभय देने वाले हैं तथा प्राणिमात्र के हृदय में विराजमान रहते हैं, उन गणपति जी का मैं चिन्तन करता हूँ। जिनकी सूँड़ चित्र-विचित्र तथा टेढ़ी-मेढ़ी है, जो एकमुख वाले तथा दो मुखवाले हैं, उन वक्रतुण्ड गणपति जी की मैं सदा वन्दना करता हूँ। दक्षिण हाथ की सूँड वाले, कल्पवृक्ष के नीचे स्थित कामधेनु-स्वरुप, चिन्तामणि के समान फल देनेवाले और अद्भुत सुन्दर रूप धारण करने वाले गणेश जी की जो पूजा करता है, उसके मनोरथों की पूर्ण सिद्धि हो जाती है। वेदव्यास जी के इस गणेशाष्टक स्तवन का पाठ करने से मनुष्यों को पुण्य प्राप्त होता है, इसका पाठ करने वाले का दुःख समाप्त हो जाता है और उसे लक्ष्मी सहित विद्या की प्राप्ति हो जाती है।
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