गणेश पंचरत्न स्तोत्र | Ganesh Pancharatna Stotra

गणेश पंचरत्न स्तोत्र |

श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र में कुल 6 श्लोक हैं। श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र में भगवान गणेश जी के गुणों का वर्णन श्लोक के माध्यम से किया गया। यह स्तोत्र प्राचीनतम स्तोत्रों में से एक है, इसे किसी भी मंगल कार्य को करने से पहले जाप किया जाता है। इसके जाप से मंगल कार्य बिना किसी बाधा के पूरे होते हैं। चरत्न स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मन को शांति मिलती है। इसके जाप से जीवन से सभी बुराई दूर होती है और साधक को स्वास्थ्य, धन और समृद्धि मिलती है।
 Ganesh Pancharatna Stotra

गणेश पंचरत्न स्तोत्र | Ganesh Pancharatna Stotra

मुदा करात्तमोदकं सदा विमुक्तिसाधकं 
कलाधरावतंसकं विलासिलोकरञ्जकम् ।

अनायकैकनायकं विनाशितेभदैत्यकं 
नताऽशुभा-ऽशुनाशकंनमामि तं विनायकम् ॥१॥

नतेतरातिभीकरं नवोदितार्कभास्वरं 
नमत्सुरारिनिर्जरं नताधिकापदुद्धरम् ।

सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं 
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥२॥

समस्तलोकशङ्करं निरस्तदैत्यकुञ्जरं 
दरेतरोदरं वरं वरेभ-वक्त्रमक्षरम् ।

कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं 
मनस्करं नमस्कृतं नमस्करोमि भास्वरम् ॥३॥

अकिञ्चनार्तिमार्जनं चिरन्तनोक्तिभाजनं 
पुरारिपूर्वनन्दनं सुरारि-गर्व-चर्वणम् ।

प्रपञ्चनाश-भीषणं धनञ्जयादिभूषणं 
कपोलदानवारणं भजे पुराणवारणम् ॥४॥

नितान्त-कान्तदन्त-कान्तिमन्त-
कान्तकात्मजमचिन्त्यरूपमन्तहीनमन्तरायकृन्तनम् ।

हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनां 
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥५॥

महागणेशपञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहं 
प्रगायति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।

अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां 
समाहितायुरष्टभूतिमभ्युपैति सोऽचिरात् ॥६॥

इति श्रीशङ्करभगवतः कृतौ गणेशपञ्चरत्नस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥१२॥

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