अग्नि पुराण दो सौ बासठवाँ अध्याय ! Agni Purana 262 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ बासठवाँ अध्याय ! Agni Purana 262 Chapter !

अग्नि पुराण 262 अध्याय - अथर्वव विधानम्

पुष्कर उवाच

साम्नां विधानं कथितं वक्षअये चाथर्व्वणामथ ।
शान्तातीयं गणं हुत्वा शान्तिमाप्नोति मानवः ।। १ ।।

भैषज्यञ्च गणं हुत्वा सर्व्वान्रोगान् व्यपोहति ।
त्रिसप्तीयं गणं हुत्वा सर्व्वपपैः प्रमुच्यते ।। २ ।।

क्कचिन्नाप्नोति च भयं हुत्वा चैवाभयङ्गणं ।
न क्कचिज्जायते राम गणं हुत्वा पराजितं ।। ३ ।।

आयुष्यञ्च गणं हुत्वा अपमृत्युं व्यपोहति ।
स्वस्तिमाप्नोति सर्व्वत्र हुत्वा स्वस्त्यनङ्गणं ।। ४ ।।

श्रेयसा योगमाप्नोति शर्म्मवर्म्मगणन्तथा ।
वास्तोष्पत्यगणं हुत्वा वास्तुदोषान् व्यपोहति ।। ५ ।।

तथा रौद्रगणं हुत्वा सर्व्वान् दोषान् व्यषोहति ।
एतैर्दशगुणैर्होमो ह्यष्टादशसु शान्तिषु ।। ६ ।।

वैष्णवी शान्तिरैन्द्री च व्राह्मी रौद्री तथैव च ।
वायव्या वारुणी चैव कौवेरी भार्गवी तथा ।। ७ ।।

प्राजापत्या तथा त्वाष्ट्री कौमारी वह्निदेवता ।
मारुद्‌गणा च गान्धारी शान्तिर्नैर्ऋतकी तथा ।। ८ ।।

शान्तिराङ्गिरसी याम्या पार्थिवी सर्व्वकामदा ।
यस्त्वां मृत्युरिति ह्येतज्जप्तं मृत्युविनाशनं ।। ९ ।।

सुपर्णंस्त्वेति हुत्वा च भुजगैर्नैव बाध्यते ।
इन्द्रेण दत्तमित्येतत् सर्वकामकरम्भवेत् ।। १० ।।

इन्द्रेण दत्तमित्येतत् सर्वबाधाविनाशनं ।
इमा देवीति मन्त्रश्च सर्वशान्तिकरः परः ।। ११ ।।

देवा मरुत इत्येतत् सर्वकामकरम्भवेत् ।
यमस्य लोकादित्येत्त् दुःस्वप्नशमनम्परं ।। १२ ।।

इन्द्रश्च पञ्चबणिजेति पण्यलाभकरं परं ।
कामो मे वाजीति हुतं स्त्रीणां सौबाग्यवर्द्धनं ।। १३ ।।

तुभ्यमेव जबीमन्नित्ययुतन्तु हुतम्भवेत् ।
अग्नेगोबिन्न इत्येतत् मेधावृद्धिकरम्परं ।। १४ ।।

ध्रुवं ध्रुवेणेति हुतं स्थानलाभकरं भवेत् ।
अलक्तजीवेति शुना कृषिलाभकरं भवेत् ।। १५ ।।

अहन्ते भग्न इत्येतत् भवेत्‌सौभाग्यवर्द्धनं ।
ये मे पाशास्तथाप्येतत् बन्धनान्मोक्षकारणं ।। १६ ।।

शपत्वहन्निति रिपून् नाशयेद्धोमजाप्यतः ।
त्वमुत्तममितीत्येतद्‌यशोबुद्धिविवर्द्धनं ।। १७ ।।

यथा मृगमतीत्येतत् स्त्रीणां सौभाग्यवर्द्धनं ।
येन चेहदिदञ्चैव गर्भलाभकरं भवेत् ।। १८ ।।

अत्यन्ते योनिरित्येतत् पुत्रलाभकरं भवेत् ।
शिवः शिवाभिरित्येतत् भवेत्सौभाग्यवर्द्धनं ।। १९ ।।

वृहस्पतिर्न्नः परिपातु पथि स्वस्त्ययनं भवेत् ।
मुञअचामि त्वेति कथितमपमृत्युनिवारणं ।। २० ।।

अथर्वशिरसोऽद्येता सर्वपापैः प्रमुच्यते ।
प्राधान्येन तु मन्त्राणां किञ्चित् कर्म तवेरितं ।। २१ ।।

वृक्षाणआं यज्ञियानान्तु समिधः प्रथमं हविः ।
आज्यञ्च व्रीहयश्चैव तथा वै गौरसर्षपाः ।। २२ ।।

अक्षतानि तिलाश्चैव दधिक्षीरे च भार्गव ।
दर्भास्तथैव दूर्वाश्च विल्वानि कमलानि च ।। २३ ।।

शान्तिपुष्टिकराण्याहुर्द्रव्याण्येतानि सर्वशः ।
तैलङ्कणानि धर्मज्ञ राजिका रुधिरं विषं ।। २४ ।।

समिधः कण्टकोपेता अभिचारेषु योजयेत् ।
आर्षं वै दैवतं छन्दो बिन्योगज्ञ आचरेत् ।। २५ ।।

इत्यादिमहापुराणे आग्नेय अथर्व्वविधानं नाम द्विषष्ट्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।

अग्नि पुराण दो सौ बासठवाँ अध्याय हिन्दी मे -Agni Purana 262 Chapter In Hindi

दो सौ बासठवाँ अध्याय - अथर्वविधान - अधर्ववेदोक्त मन्त्रों का विभिन्न कर्मों में विनियोग 

पुष्कर कहते हैं- परशुराम ! 'सामविधान' कहा गया। अब मैं 'अथर्व विधान का वर्णन करूँगा। शान्तातीयगण के उद्देश्य से हवन कर के मानव शान्ति प्राप्त करता है। भैषज्यगण के उद्देश्य से होम कर के होता समस्त रोगों को दूर करता है। त्रिसप्तीयगण के उद्देश्य से आहुतियाँ देने वाला सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। अभयगण के उद्देश्य से होम करनेपर मनुष्य किसी स्थानपर भी भय नहीं प्राप्त करता। परशुराम! अपराजितगण के उद्देश्य से हवन करनेवाला कभी पराजित नहीं होता। आयुष्यगण के उद्देश्य से आहुतियाँ देकर मानव दुमृत्युको दूर कर देता है। स्वस्त्ययनगणके उद्देश्यसे हवन करनेपर सर्वत्र मङ्गलकी प्राप्ति होती है। शर्मवर्मगणके उद्देश्यसे होम करनेवाला कल्याणका भागी होता है। वास्तोष्पत्यगणके उद्देश्यसे आहुतियाँ देनेपर वास्तुदोषकी शान्ति होती है। रौद्रगणके लिये हवन करके होता सम्पूर्ण दोषोंका विनाश कर देता है। निम्नाङ्कित अठारह प्रकारकी शान्तियोंमें इन दस गणोंके द्वारा होम करना चाहिये। (वे अठारह शान्तियाँ ये हैं वैष्णवी, ऐन्द्री, ब्राह्मी, रौद्री, वायव्या, वारुणी, कौबेरी, भार्गवी, प्राजापत्या, त्वाष्ट्री, कौमारी, आग्नेयी, मारुद्गणी, गान्धर्वी, नैर्ऋति की, आङ्गिरसी, याम्या एवं कामनाओं को पूर्ण करने वाली पार्थिवी शान्ति ॥ १-८३ ॥ 

'यस्त्वां मृत्युः०' इत्यादि आथर्वण-मन्त्र का जप मृत्यु का नाश करने वाला है। 'सुपर्णस्त्वा०' (४।६।३) - इस मन्त्र से होम करने पर मनुष्य को सर्पों से बाधा नहीं प्राप्त होती। 'इन्द्रेण दत्तो०' (२।२९।४) - यह मन्त्र सम्पूर्ण कामना ओं को सिद्ध करनेवाला है। 'इन्द्रेण दत्तो०' यह मन्त्र समस्त बाधाओं का भी विनाश करने वाला है। 'इमा या देवी' (२।१०।४)- यह मन्त्र सभी प्रकारकी शान्तियों के लिये उत्तम है। 'देवा मरुतः' - यह मन्त्र समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाला है। 'यमस्य लोका' (१९।५६।१)- यह मन्त्र दुःस्वप्न का नाश करनेमें उत्तम है। 'इन्द्रश्च पञ्च वणिजः०' यह मन्त्र परमपुण्य का लाभ कराने वाला है। 'कामो मे वाजी०' मन्त्रसे हवन करने पर स्त्रियों के सौभाग्य की वृद्धि होती है। 'तुभ्यमेव०' (२।२८।१) इत्यादि मन्त्रको नित्य दस हजार जप करते हुए उसका दशांश हवन करे एवं 'अग्ने गोभिर्नः०' मन्त्रसे होम करे तो उत्तम मेधाशक्तिकी वृद्धि होती है। 'ध्रुवं ध्रुवेण०' (७।८४।१) इत्यादि मन्त्रसे होम किया जाय तो वह स्थानकी प्राप्ति कराता है।

'अलक्तजीवेति शुना०'- यह मन्त्र कृषि-लाभ करानेका साधन है। 'अहं ते भग्ग्रः'- यह मन्त्र सौभाग्यकी वृद्धि करनेवाला है। 'ये मे पाशाः०' मन्त्र बन्धनसे छुटकारा दिलाता है। 'शपत्वहन्०' इस मन्त्रका जप एवं होम करने से मनुष्य अपने शत्रुओंका विनाश कर सकता है। 'त्वमुत्तमम्०' यह मन्त्र यश एवं बुद्धिका विस्तार करनेवाला है। 'यथा मृगाः० (५।२१।४) - यह मन्त्र स्त्रियोंके सौभाग्य को बढ़ाने वाला है। 'येन चेह दिशं चैव०' यह मन्त्र गर्भकी प्राप्ति करानेवाला है। 'अयं ते योनिः०' (३।२०।१) - इस मन्त्रके अनुष्ठानसे पुत्रलाभ होता है। 'शिवः शिवाभिः०' इत्यादि मन्त्र सौभाग्यवर्धक है। 'बृहस्पतिर्नः परि पातु०' (७।५१।१) इत्यादि मन्त्र का जप मार्ग में मङ्गल करने वाला है। 'मुञ्चामि त्वा० (३।११।१) - यह मन्त्र अपमृत्यु का निवारक है। अथर्वशीर्ष का पाठ करने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। यह मैंने तुमसे प्रधानतया मन्त्रों के द्वारा साध्य कुछ कर्म बताये हैं। परशु राम ! यज्ञ-सम्बन्धी वृक्षों की समिधाएँ सबसे मुख्य हविष्य हैं। इसके सिवा घृत, धान्य, श्वेत सर्षप, अक्षत, तिल, दधि, दुग्ध, कुश, दूर्वा, बिल्व और कमल ये सभी द्रव्य शान्ति कार क एवं पुष्टिकारक बताये गये हैं। धर्म ज्ञ! तेल, कण, राई, रुधिर, विष एवं कण्ट कयुक्त समिधाओंका अभिचारकर्ममें प्रयोग करे। जो मन्त्रों के ऋषि, देवता, छन्द और विनियोग को जानता है, वही उन-उन मन्त्रों द्वारा कथित कर्मों का अनुष्ठान करे ॥ ९-२५॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'अधर्वविधान' नामक दो सौ बासठवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २६२॥

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