अग्नि पुराण दो सौ चौहत्तरवाँ अध्याय ! Agni Purana 274 Chapter !

अग्नि पुराण दो सौ चौहत्तरवाँ अध्याय ! Agni Purana 274 Chapter !

अग्नि पुराण 274 अध्याय - सोमवंशवर्णनम्

अग्निरुवाच

सोमवंशं प्रवक्ष्यामि पठितं पापनाशनम् ।
विष्णुनाभ्यब्जजो ब्रह्मा ब्रह्मपुत्रोऽत्रिरत्रितः ॥ १ ॥

सोमश्चक्रे राजसूयं त्रैलोक्यं दक्षइणआन्ददौ ।
समाप्तेऽवभृथे सोमं तद्रूपालोकनेच्छवः ॥ २ ॥

कामवाणाभितप्ताङ्ग्यो नरदेव्यः सिषेविरे ।
लक्ष्मीर्न्नारायणं त्यक्त्वा सिनीवाली च कर्द्दमम् ॥ ३ ॥

द्युतिं विभावसुन्त्यक्त्वा पुष्टिर्धातारमव्ययम् ।
प्रभा प्रभाकरन्त्यक्त्वा हविष्मन्तं कुहूः स्वयम् ॥ ४ ॥

कीर्त्तिर्जयन्तम्भर्त्तारं वसुर्म्मारीचकश्यपम् ।
धृतिस्त्यक्त्वा पतिं नन्दीं सोममेवाभजत्तदा ॥ ५ ॥

स्वकीया इव सोमोऽपि कामयामास तास्तदा ।
एवं कृतापचारस्य तासां भर्त्तृगणस्तदा ॥ ६ ॥

न शशाकापचाराय शापैः शस्त्रादिभिः पुनः ।
सप्तलोकैकनाथत्वमवाप्तस्तपसा ह्युत ॥ ७ ॥

विवभ्राम मतिस्तस्य विनयादनया हता ।
बृहस्पतेः स वै भार्य्यां तारां नाम यशस्विनीम् ॥ ८ ॥

जहार तरसा सोमो ह्यवमन्याङ्गिरःसुतम् ।
ततस्तद्‌युद्धमभवत् प्रख्यातं ताकामयम् ॥ ९ ॥

देवानां दानवानाञ्च लोकक्षयकरं महत् ।
ब्राह्मा निवार्य्योशनसन्तारामङ्गिरसे ददौ ॥ १० ॥

तामन्तःप्रसवां दृष्ट्वा गर्भं त्यजाब्रवीद्गुरुः ।
गर्भस्त्यक्तः प्रदीप्तोऽथ प्राहाहं सोमसम्भवः ॥ ११ ॥

एवं सोमाद्‌ बुधः पुत्त्रः पुत्त्रस्तस्य पुरूरवाः ।
स्वर्गन्त्यक्त्वोर्वशी सा तं वरयामास चाप्सराः ॥ १२ ॥

तथा सहाचरद्राजा दशवर्षाणि पञ्च च ।
पञ्च षट् सप्त चाष्टौ च दश चाष्टौ महामुने ॥ १३ ॥

एकोऽग्निरभवत् पूर्व्वं तेन त्रेता प्रवर्त्तिता ।
पुरूरवा योगशीलो गान्धर्व्वलोकमीयिवान् ॥ १४ ॥

आयुर्दृढायुरश्वायुर्धनायुर्धृतिमान् वसुः ।
दिविजातः शतायुश्च सुषुवे चोर्व्वशी नृपान् ॥ १५ ॥

आयुषो नहुषः पुत्रो वृद्धशर्म्मा रजिस्तथा ।
दर्भो विपाप्मा पञ्चागन्यं रजेः पुत्रशतं ह्यभूत् ॥ १६ ॥

राजेया इति विख्याता विष्णुदत्तवरो रजिः ।
देवासुरे रणे दैत्यानबधीत् सुरयाचितः ॥ १७ ॥

गतायेन्द्राय पुत्रत्वं दत्वा राज्यं दिवङ्गतः ।
रजेः पुत्रैर्हृतं राज्यं शक्रस्याथ सुदुर्म्मनाः ॥ १८ ॥

ग्रहशान्त्यादिविधिना गुरुरिन्द्राय तद्ददौ ।
मोहयित्वा रजिसुतानासंस्ते निजधर्म्मगाः ॥ १९ ॥

नहुषस्य सुताः सप्त यतिर्य्ययातिरुत्तमः ।
उद्भवः पञ्चकश्चैव शर्य्यातिमेघपालकौ ॥ २० ॥

यतिः कुमारभावेऽपि विष्णुं ध्यात्वा हरिं गतः ।
देवयानी सुक्रकन्या ययातेः पत्न्यऽभूत्तदा ॥ २१ ॥

वृषपर्व्वजा सर्म्मिष्ठा ययातेः पञ्च तत्सुताः ।
यदुञ्च तुर्व्वसुञ्चैव देवयानी व्यजायत ॥ २२ ॥

द्रुह्यञ्चानूञ्च पूरुञ्च शर्म्मिष्ठा वार्षपर्व्वणी ।
यदुः पूरुश्चाभवतान्तेषां वंशविवर्द्धनौ ॥ २३ ॥

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये सोमवंशवर्णनं नाम चतुःसप्तत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥

अग्नि पुराण - दो सौ चौहत्तरवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 274 Chapter!-In Hindi

दो सौ चौहत्तरवाँ अध्याय - सोमवंशका वर्णन

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ! अब मैं सोमवंशका वर्णन करूँगा, इसका पाठ करनेसे पापका नाश होता है। विष्णुके नाभिकमलसे ब्रह्मा उत्पन्न हुए। ब्रह्माके पुत्र महर्षि अत्रि हुए। अत्रिसे सोमकी उत्पत्ति हुई। सौमने राजसूय यज्ञ किया और उसमें तीनों लोकोंके राज्यका उन्होंने दक्षिणारूपसे दान कर दिया। जब यज्ञके अन्तमें अवभृथस्नान समाप्त हुआ तो उनका रूप देखनेकी इच्छासे नौ देवियाँ चन्द्रमाके पास आयीं और कामबाणसे संतप्त होकर उनकी सेवा करने लगीं। लक्ष्मी (कान्ति) नारायणको छोड़कर चली आयी। सिनीवाली कर्दमको, द्युति अग्निको और पुष्टि अपने अविनाशी पति धाताको त्यागकर आ गयीं। प्रभा प्रभाकरको और कुहू हविष्मान्‌को छोड़कर स्वयं सोमके पास चली आयी। कीर्तिने अपने स्वामी जयन्तको छोड़ा और वसुने मरीचिनन्दन कश्यपको तथा धृति भी उस समय अपने पति नन्दिको त्यागकर सोमकी ही सेवामें संलग्र हो गयीं ॥ १-५॥ 

चन्द्रमाने भी उस समय उन देवियोंको अपनी ही पत्नीकी भाँति सकामभावसे अपनाया। सोमके इस प्रकार अत्याचार करनेपर भी उस समय उन देवियोंके पति शाप तथा शस्त्र आदिके द्वारा उनका अनिष्ट करनेमें समर्थ न हो सके; अपितु सोम ही अपनी तपस्याके प्रभावसे 'भू' आदि सातों लोकों के एकमात्र स्वामी हुए। इस अनीतिसे ग्रस्त होकर चन्द्रमाकी बुद्धि विनयसे भ्रष्ट होकर भ्रान्त हो गयी और उन्होंने अङ्गिरानन्दन बृहस्पतिजीका अपमान करके उनकी यशस्विनी पत्नी ताराका बलपूर्वक अपहरण कर लिया। इसके कारण देवताओं और दानवोंमें संसारका विनाश करनेवाला महान् युद्ध हुआ, जो 'तारकामय संग्राम' के नामसे विख्यात है। अन्तमें ब्रह्माजीने (चन्द्रमाकी ओरसे युद्ध में सहायता पहुँचानेवाले) शुक्राचार्य को रोककर तारा बृहस्पतिजीको दिला दी। देवगुरु बृहस्पतिने ताराको गर्भिणी देखकर कहा- 'इस गर्भका त्याग कर दो।' उनकी आज्ञासे ताराने उस गर्भ का त्याग किया, जिससे बड़ा तेजस्वी कुमार प्रकट हुआ। उसने पैदा होते ही कहा- 'मैं चन्द्रमाका पुत्र हूँ।' इस प्रकार सोमसे बुधका जन्म हुआ। उनके पुत्र पुरूरवा हुए; उर्वशी नामकी अप्सराने स्वर्ग छोड़कर पुरूरवाका वरण किया ॥ ६-१२॥ 

महामुने। राजा पुरूरवाने उर्वशीके साथ उनसठ वर्षोंतक विहार किया। पूर्वकालमें एक ही अग्रि थे। राजा पुरूरवाने ही उन्हें (गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्रि भेदसे) तीन रूपोंमें प्रकट किया। राजा योगी थे। अन्तमें उन्हें गन्धर्वलोककी प्राप्ति हुई। उर्वशीने राजा पुरूरवासे आयु, दृढ़ायु, अश्वायु, धनायु, धृतिमान्, वसु, दिविजात और शतायु - इन आठ पुत्रोंको उत्पन्न किया। आयुके नहुष, वृद्धशर्मा, रजि, दम्भ और विपाप्मा- ये पाँच पुत्र हुए। रजिसे सौ पुत्रोंका जन्म हुआ। वे 'राजेय 'के नामसे प्रसिद्ध थे। राजा रजिको भगवान् विष्णुसे वरदान प्राप्त हुआ था। उन्होंने देवासुर- संग्राममें देवताओंकी प्रार्थनासे दैत्योंका वध किया था। 

इन्द्र राजा रजि के पुत्रभाव को प्राप्त हुए। रजि स्वर्ग का राज्य इन्द्रको देकर स्वयं दिव्यलोकवासी हो गये। कुछ कालके बाद रजिके पुत्रों ने इन्द्र का राज्य छीन लिया। इस से वे मन-ही-मन बहुत दुखी हुए। तदनन्तर देवगुरु बृहस्पतिने ग्रह-शान्ति आदिकी विधिसे रजिके पुत्रोंको मोहित करके राज्य लेकर इन्द्रको दे दिया। उस समय रजिके पुत्र अपने धर्मसे भ्रष्ट हो गये थे। राजा नहुषके सात पुत्र हुए। उनके नाम थे यति, ययाति, उत्तम, उद्धव, पञ्चक, शर्याति और मेघपालक। यति कुमारावस्थामें होनेपर भी भगवान् विष्णुका ध्यान करके उनके स्वरूपको प्राप्त हो गये। उस समय शुक्राचार्यकी कन्या देवयानी तथा वृषपर्वाकी पुत्री शर्मिष्ठा- ये दो राजा ययाति की पत्रियाँ हुई। राजाके इन दोनों स्त्रियोंसे पाँच पुत्र उत्पन्न हुए। देवयानीने यदु और तुर्वसुको जन्म दिया और वृषपर्वाकी पुत्री शर्मिष्ठाने दुह्यु, अनु और पूरु-ये तीन पुत्र उत्पन्न किये। इनमेंसे यदु और पूरु- ये दो ही सोमवंशका विस्तार करनेवाले हुए ॥ १३-२३॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'सोमवंशका वर्णन' नामक दो सौ चौहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २७४॥

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