अग्नि पुराण तीन सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय ! Agni Purana 328 Chapter !

अग्नि पुराण तीन सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय ! Agni Purana 328 Chapter !

अग्नि पुराण तीन सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय - छन्दःसारः

अग्निरुवाच

छन्दो वक्ष्ये मूलजैस्तैः पिङ्गलोक्तं यथाक्रमम् ।
सर्व्वादिमध्यान्तगणौ म्लौ द्वौ जौ स्तौ त्रिकौ गणाः ।। १ ।।

ह्रस्वो गुरुर्व्वा पादान्ते पूर्व्वो योगाद्‌ विसर्गतः ।
अनुस्वाराद्व्यञ्जनात् स्थात् जिह्वामूलीयतस्तथा ।। २ ।।

उपाध्मानीयतो दीर्वो गुरुर्ग्लौ नौ गणाविह ।
वसवोष्टौ च चत्वारो वेदादित्यादिलोपतः ।। ३ ।।

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये छन्दःसारो नामाष्टाविंशत्यधिकत्रिशततमोऽध्यायः ।।

अग्नि पुराण - तीन सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 328 Chapter In Hindi

तीन सौ अट्ठाईसवाँ अध्याय - छन्दों के गण और गुरु-लघु की व्यवस्था

अग्ग्रिदेव कहते हैं- वसिष्ठ! अब मैं वेदके मूलमन्त्रों क अनुसार पिङ्गलोक्त छन्दों का क्रमशः वर्णन करूँगा। मगण, नगण, भगण, यगण, जगण, रगण, सगण और तगण ये आठ गण होते हैं। सभी गण तीन-तीन अक्षरोंके हैं। इनमें मगण के सभी अक्षर गुरु (555) और नगण के सब अक्षर लघु (।।) होते हैं। आदि गुरु (511) होनेसे 'भगण' तथा आदि लघु (155) होनेसे 'यगण' होता है। 

इसी प्रकार अन्त्य गुरु (115) होने से 'सगण' तथा अन्त्य लघु होने से 'तगण' (551) होता है। पादके अन्तमें वर्तमान हस्व अक्षर विकल्पसे गुरु माना जाता है। विसर्ग, अनुस्वार, संयुक्त अक्षर (व्यञ्जन), जिह्वामूलीय तथा उपध्मानीयसे अव्यवहित पूर्वमें स्थित होने पर 'हस्व' भी 'गुरु' माना जाता है, दीर्घ तो गुरु है ही। गुरु का संकेत 'ग' और लघु का संकेत 'ल' है। ये 'ग' और 'ल' गण नहीं हैं। 'वसु' शब्द आठको और 'वेद' चारकी संज्ञा हैं, इत्यादि बातें लोक के अनुसार जाननी चाहिये ॥ १-३॥

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'छन्दस्सारका कथन' नामक तीन सी अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ३२८॥

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