अग्नि पुराण तीन सौ उनतीसवाँ अध्याय ! Agni Purana 329 Chapter !

अग्नि पुराण तीन सौ उनतीसवाँ अध्याय ! Agni Purana 329 Chapter !

अग्नि पुराण तीन सौ उनतीसवाँ अध्याय - छन्दःसारः

अग्निरुवाच

छन्दोधिकारे गायत्री देवी चैकाक्षरी भवेत् ।
पञ्चदशाक्षरी सा स्यात्प्राजापत्याष्टविर्णिका ॥१

यजुषां षडर्णा गायत्री साम्नां स्याद्द्वादशाक्षरा ।
ऋचामष्टादशार्णा स्यात्साम्नां वर्धेत च द्वयं ॥२

ऋचां तुर्यञ्च वर्धेत प्राजापत्याचतुष्टयं ।
वर्धेदेकैककं शेषे आतुर्यादेकमुत्सृजेत् ॥३

उष्णिगनुष्टुब्वृहती पङ्क्तिस्त्रिष्टुब्जगत्यपि ।
तानि ज्ञेयानि क्रमशो गायत्र्यो ब्रह्म एव ताः ॥४

तिस्रस्तिस्रः समान्यः स्युरेकैका आर्ष्य एव च ।
ऋग्यजुषां संज्ञाः स्युश्चतुःषष्टिपदे लिखेत् ॥५

इत्याग्नेये महापुराणे छन्दःसारो नामोनत्रिंशदधिकत्रिशततमोऽध्यायः।

अग्नि पुराण - तीन सौ उनतीसवाँ अध्याय ! हिन्दी मे -Agni Purana 329 Chapter!-In Hindi

तीन सौ उनतीसवाँ अध्याय - गायत्री आदि छन्दों का वर्णन

अग्निदेव कहते हैं- वसिष्ठ (गायत्री छन्दके आठ भेद हैं-आर्षी, दैवी, आसुरी, प्राजापत्या, याजुषी, साम्नी, आर्ची तथा ब्राह्मी) 'छन्द' शब्द अधिकारमें प्रयुक्त हुआ है, अर्थात् इस पूरे प्रकरणमें छन्द-शब्दकी अनुवृत्ति होती है। 'दैवी' गायत्री एक अक्षरकी, 'आसुरी' पंद्रह अक्षरोंकी, 'प्राजापत्या' आठ अक्षरोंकी, 'याजुषी' छः अक्षरोंकी, 'साम्नी' गायत्री बारह अक्षरोंकी तथा 'आर्ची' अठारह अक्षरोंकी है। 

यदि साम्नी गायत्री में क्रमशः दो-दो अक्षर बढ़ाते हुए उन्हें छः कोष्ठोंमें लिखा जाय, इसी प्रकार आर्ची गायत्री में तीन-तीन, प्राजापत्या गायत्री में चार-चार तथा अन्य गायत्रियों में अर्थात् दैवी और याजुषीमें क्रमशः एक-एक अक्षर बढ़ जाय एवं आसुरी गायत्री का एक-एक अक्षर क्रमशः छः कोष्ठों में घटता जाय तो उन्हें 'साम्नी' आदि भेदसहित क्रमशः उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, पङ्कि, त्रिष्टुप् और जगती छन्द जानना चाहिये। याजुषी, साम्नी तथा आर्ची- इन तीन भेदोंवाले गायत्री आदि प्रत्येक छन्दके अक्षरों को पृथक् पृथक् जोड़ने पर उन सबको 'ब्राह्मी गायत्री', 'ब्राह्मी-उष्णिक् आदि छन्द समझना चाहिये। इसी प्रकार याजुषीके पहले जो दैवी, आसुरी और प्राजापत्या नामक तीन भेद हैं, उनके अक्षरोंको पृथक् पृथक् छः कोष्ठों में जोड़नेपर जितने अक्षर होते हैं, वे 'आर्षी गायत्री', 'आर्षी उष्णिक्' आदि कहलाते हैं। इन भेदोंको स्पष्टरूप से समझने के लिये चौंसठ कोष्ठों में लिखना चाहिये ॥ १-५ ॥
(कोष्ठक इस प्रकार है-)

इस प्रकार आदि आग्रेय महापुराणमें 'छन्दस्सारका कथन' नामक तीन सौ उनतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ३२९ ॥

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